भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आज 12 करोड़ सदस्यों के साथ न केवल भारत, अपितु विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी है। यह एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल है, जो भारत को एक सुदृढ़, समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करने हेतु कृतसंकल्प (determined) है। भारत को एक समर्थ राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ भाजपा का गठन 6 अप्रैल, 1980 को नई दिल्ली के कोटला मैदान में आयोजित एक कार्यकर्ता अधिवेशन में हुआ था, जिसमें प्रथम अध्यक्ष के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी निर्वाचित हुए। अपनी स्थापना के साथ ही भाजपा ने अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं लोकहित के विषयों पर मुखर रहते हुए भारतीय लोकतंत्र में अपनी सशक्त भागीदारी दर्ज की और भारतीय राजनीति को नए आयाम प्रदान किए। कांग्रेस की एकाधिकार वाली एक-दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में जानी जाने वाली भारतीय राजनीति को भाजपा ने द्विध्रुवीय बनाकर गठबंधन-युग के सूत्रपात में अग्रणी भूमिका निभाई।
देश में विकास आधारित राजनीति की नींव भी भाजपा ने विभिन्न राज्यों में सत्ता में आने के पश्चात् तथा पूरे देश में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) शासन के दौरान रखी। वर्ष 2014 में, तीन दशकों के पश्चात्, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की जनता ने किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत प्रदान किया। वर्तमान में, लगातार तीसरी बार भारी बहुमत के साथ भाजपा-नीत एनडीए सरकार केंद्र में विद्यमान (present) है।
पृष्ठभूमि
हालांकि भारतीय जनता पार्टी का औपचारिक गठन 6 अप्रैल, 1980 को हुआ, किंतु इसका इतिहास भारतीय जनसंघ से संनादि (connected) है। स्वतंत्रता प्राप्ति और देश विभाजन के साथ ही देश में एक नई राजनीतिक परिस्थिति उत्पन्न हुई। महात्मा गांधी की हत्या के पश्चात् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर प्रतिबंध लगाकर देश में एक नया राजनीतिक षड्यंत्र रचा जाने लगा। सरदार पटेल के देहावसान के बाद कांग्रेस में पंडित जवाहरलाल नेहरू का अधिनायकवाद प्रबल होने लगा। गांधी और पटेल दोनों के न रहने के कारण कांग्रेस ‘नेहरूवाद’ की चपेट में आ गई। अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, लाइसेंस-परमिट-कोटा राज, राष्ट्रीय सुरक्षा पर लापरवाही, कश्मीर जैसे राष्ट्रीय मसलों पर घुटनाटेक नीति, और अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारतीय हितों की अनदेखी जैसे अनेक विषय देश के राष्ट्रवादी नागरिकों को उद्विग्न करने लगे। ‘नेहरूवाद’ तथा पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर भारत के मौन रहने से क्षुब्ध होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
इधर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ स्वयंसेवकों ने भी प्रतिबंध के दंश को झेलते हुए यह महसूस किया कि संघ के राजनीतिक क्षेत्र से सैद्धांतिक दूरी बनाए रखने के कारण वे अलग-थलग तो पड़ ही रहे थे, साथ ही संघ को राजनीतिक तौर पर निशाना भी बनाया जा रहा था। ऐसी परिस्थिति में एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल की आवश्यकता देश में महसूस की जाने लगी। फलस्वरूप, भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर, 1951 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में दिल्ली के राघोमल आर्य कन्या उच्च विद्यालय में हुई।
जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, प्रोफेसर बलराज मधोक आदि प्रमुख थे। भारतीय जनसंघ ने अपने स्थापना काल में ही समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code), गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध, और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसे राष्ट्रहित के मुद्दे उठाए। 1952 के आम चुनाव में भारतीय जनसंघ ने 94 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें से तीन विजयी हुए: कोलकाता दक्षिण-पूर्व से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पश्चिम बंगाल के मिदनापुर-झारग्राम से श्री दुर्गा चरण बनर्जी, और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से श्री उमाशंकर त्रिवेदी।
भारतीय जनसंघ ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में कश्मीर और राष्ट्रीय अखंडता के मुद्दे पर आंदोलन छेड़ा तथा कश्मीर को किसी भी प्रकार का विशेषाधिकार देने का विरोध किया। नेहरू के अधिनायकवादी रवैये के फलस्वरूप डॉ. मुखर्जी को कश्मीर की जेल में डाल दिया गया, जहाँ उनकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। एक नई पार्टी को सशक्त बनाने का दायित्व पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कंधों पर आ गया। भारत-चीन युद्ध में भी भारतीय जनसंघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राष्ट्रीय सुरक्षा पर नेहरू की नीतियों का डटकर विरोध किया।
1967 में पहली बार भारतीय जनसंघ और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व में भारतीय राजनीति पर लंबे समय से बरकरार कांग्रेस का एकाधिकार टूटा, जिसके परिणामस्वरूप कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय हुई।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय जनसंघ के बारे में कहा था:
"भारतीय जनसंघ एक अलग प्रकार का दल है, जो किसी भी प्रकार से सत्ता में आने की लालसा वाले लोगों का झुंड नहीं है। जनसंघ एक दल नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। यह राष्ट्रीय अभिलाषा का स्वतःस्फूर्त निर्झर (spring) है। यह राष्ट्र के नियत लक्ष्य को आग्रहपूर्वक प्राप्त करने की आकांक्षा है।"
भारतीय जनसंघ को वर्ष 1952 में 3, 1957 में 4, 1962 में 14, 1967 में 35, और 1971 में 22 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। अब जनसंघ अखिल भारतीय स्तर पर जन-स्वीकार्य विपक्षी दल का रूप ले चुका था।
भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय
सत्तर के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस निरंकुश होती जा रही थी। इसके विरुद्ध देश में जन-असंतोष उभरने लगा। गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन और बिहार में छात्र आंदोलन शुरू हो गए। कांग्रेस ने इन आंदोलनों का दमन करने का रास्ता अपनाया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया और देशभर में कांग्रेस शासन के विरुद्ध जन-असंतोष मुखर हो उठा। 1971 में भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश में विद्रोह के परिप्रेक्ष्य में बाह्य आपातकाल लगाया गया था, जो युद्ध समाप्ति के बाद भी लागू रहा। उसे हटाने की मांग भी तीव्र होने लगी। जनआंदोलनों से घबराकर इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार ने जनता की आवाज को दमनचक्र से कुचलने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप, 25 जून, 1975 को देश पर दूसरी बार आपातकाल भारतीय संविधान की धारा 352 के अंतर्गत ‘आंतरिक आपातकाल’ के रूप में थोप दिया गया।
देश के सभी प्रमुख नेता या तो नजरबंद कर दिए गए या जेलों में डाल दिए गए। समाचार पत्रों पर सेंसरशिप (censorship) लगा दी गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अनेक राष्ट्रवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हजारों कार्यकर्ताओं को ‘मीसा’ (Maintenance of Internal Security Act) के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। देश में लोकतंत्र पर खतरा मंडराने लगा। जनसंघर्ष को तेज किया गया और भूमिगत गतिविधियाँ भी तीव्र हो गईं। बढ़ते जनआंदोलनों से घबराकर इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी, 1977 को लोकसभा भंग कर दी और नए जनादेश की इच्छा व्यक्त की। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर एक नए राष्ट्रीय दल ‘जनता पार्टी’ का गठन हुआ। विपक्षी दल एक मंच से चुनाव लड़े। समय की कमी के कारण जनता पार्टी का गठन पूर्ण रूप से एक राजनीतिक दल के रूप में नहीं हो सका। फिर भी, आम चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई और जनता पार्टी एवं अन्य विपक्षी पार्टियाँ भारी बहुमत के साथ सत्ता में आईं। पूर्व घोषणा के अनुसार, 1 मई, 1977 को भारतीय जनसंघ ने करीब 5000 प्रतिनिधियों के एक अधिवेशन में अपना विलय जनता पार्टी में कर दिया।
भाजपा का गठन
जनता पार्टी का प्रयोग अधिक दिनों तक नहीं चल सका। ढाई वर्षों में ही अंतर्विरोध सतह पर आने लगे। कांग्रेस ने भी जनता पार्टी को तोड़ने में राजनीतिक दांव-पेंच खेले। भारतीय जनसंघ से जनता पार्टी में आए सदस्यों को अलग-थलग करने के लिए ‘दोहरी-सदस्यता’ का मुद्दा उठाया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध रखने पर आपत्तियाँ उठाई जाने लगीं। यह कहा गया कि जनता पार्टी के सदस्य आरएसएस के सदस्य नहीं हो सकते। 4 अप्रैल, 1980 को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने अपने सदस्यों के आरएसएस से संबंध पर प्रतिबंध लगा दिया। पूर्व जनसंघ से संबद्ध सदस्यों ने इसका विरोध किया और जनता पार्टी से अलग होकर 6 अप्रैल, 1980 को एक नए संगठन ‘भारतीय जनता पार्टी’ की घोषणा की। इस प्रकार भाजपा की स्थापना हुई।
भाजपा के संस्थापक सदस्यों में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, नानाजी देशमुख, के.आर. मलकानी, श्री सिकंदर बख्त, श्री विजय कुमार मल्होत्रा, राजमाता विजया राजे सिंधिया, श्री कुशाभाऊ ठाकरे, श्री सुंदरलाल पटवा, श्री भैरों सिंह शेखावत, श्री शांताकुमार, और श्री जगन्नाथ राव जोशी शामिल थे। श्री अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
28 से 30 दिसंबर, 1980 को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक मुंबई के समता नगर मैदान में आयोजित की गई। इस स्थापना बैठक को "समता नगर अधिवेशन" कहा जाता है। अटल जी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा:
"भाजपा स्वयं को जमीन से जुड़ी राजनीति के लिए समर्पित करने हेतु संकल्पित है। इसी प्रकार हम राजनीति, राजनीतिक दलों और नेताओं में लोगों का विश्वास बहाल कर सकते हैं। एक हाथ में भारत का संविधान और दूसरे हाथ में समानता का ध्वज लेकर आइए, संघर्ष के लिए तैयार हों।"
पार्टी के लिए एक नया चुनाव चिह्न "कमल" अपनाकर अटल जी ने भारतीय राजनीति में भाजपा के आविर्भाव की एक बड़ी भविष्यवाणी की थी: "अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।"
1985 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनाव में भाजपा को देश में करारी हार का सामना करना पड़ा। देश में भाजपा केवल दो सीटों पर विजय प्राप्त कर सकी। जीतने वाले सांसद थे: गुजरात की मेहसाना सीट से श्री ए.के. पटेल और आंध्र प्रदेश की हनमकोंडा सीट से श्री जंगा रेड्डी।
विचार एवं दर्शन
भारतीय जनता पार्टी एक सुदृढ़, सशक्त, समृद्ध, समर्थ एवं स्वावलंबी भारत के निर्माण हेतु निरंतर सक्रिय है। पार्टी की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र की है, जो आधुनिक दृष्टिकोण से युक्त एक प्रगतिशील एवं प्रबुद्ध समाज का प्रतिनिधित्व करता हो, साथ ही प्राचीन भारतीय सभ्यता, संस्कृति और उसके मूल्यों से प्रेरणा लेते हुए महान ‘विश्वशक्ति’ एवं ‘विश्वगुरु’ के रूप में विश्व पटल पर स्थापित हो। इसके साथ ही, विश्व शांति और न्याययुक्त अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को स्थापित करने के लिए विश्व के राष्ट्रों को प्रभावित करने की क्षमता रखे।
भाजपा भारतीय संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति निष्ठापूर्वक कार्य करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित राज्य को अपना आधार मानती है। पार्टी का लक्ष्य एक ऐसे लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना करना है, जिसमें जाति, संप्रदाय अथवा लिंगभेद के बिना सभी नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय, समान अवसर, तथा धार्मिक विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो।
भाजपा ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित ‘एकात्म मानवदर्शन’ को अपने वैचारिक दर्शन के रूप में अपनाया है। साथ ही, पार्टी का अंत्योदय (upliftment of the last person), सुशासन (good governance), सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, विकास, और सुरक्षा पर विशेष जोर है।
पार्टी ने पांच प्रमुख सिद्धांतों के प्रति भी अपनी निष्ठा व्यक्त की है, जिन्हें ‘पंचनिष्ठा’ कहा जाता है। ये हैं:
- राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय अखंडता
- लोकतंत्र
- सकारात्मक पंथ-निरपेक्षता (सर्वधर्मसमभाव)
- गांधीवादी समाजवाद (सामाजिक-आर्थिक विषयों पर गांधीवादी दृष्टिकोण द्वारा शोषणमुक्त समरस समाज की स्थापना)
- मूल्य आधारित राजनीति
उपलब्धियाँ
श्री अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के प्रथम अध्यक्ष निर्वाचित हुए। अपनी स्थापना के साथ ही भाजपा राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गई। बोफोर्स और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पुनः गैर-कांग्रेसी दल एक मंच पर आए और 1989 के आम चुनावों में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। वी.पी. सिंह के नेतृत्व में गठित राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया। इसी बीच देश में राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू हुआ। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की। राम मंदिर आंदोलन को मिले भारी जनसमर्थन और भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर आडवाणी जी की रथयात्रा को बीच में ही रोक दिया गया। फलस्वरूप, भाजपा ने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से समर्थन वापस ले लिया और वी.पी. सिंह की सरकार गिर गई। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर देश के अगले प्रधानमंत्री बने।
आने वाले आम चुनावों में भाजपा का जनसमर्थन लगातार बढ़ता गया। इसी बीच नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस और कांग्रेस के समर्थन से संयुक्त मोर्चा सरकारों का शासन रहा, जिस दौरान भ्रष्टाचार, अराजकता, और कुशासन के कई कीर्तिमान स्थापित हुए।
1996 के आम चुनावों में भाजपा को लोकसभा में 161 सीटें प्राप्त हुईं। भाजपा का जनसमर्थन 1989 में 85, 1991 में 120, और 1996 में 161 सीटों तक बढ़ा। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार भाजपा सरकार ने 1996 में शपथ ली, परंतु पर्याप्त समर्थन के अभाव में यह सरकार मात्र 13 दिन चल सकी। इसके बाद 1998 के आम चुनावों में भाजपा ने 182 सीटों पर विजय प्राप्त की और श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी। किंतु जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण सरकार लोकसभा में विश्वासमत के दौरान एक वोट से गिर गई। इसके पीछे अनैतिक आचरण था, जिसमें उड़ीसा के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिरधर गोमांग ने पद पर रहते हुए भी लोकसभा सदस्यता नहीं छोड़ी और विश्वासमत के दौरान सरकार के विरुद्ध मतदान किया। कांग्रेस के इस अनैतिक आचरण के कारण देश को पुनः आम चुनावों का सामना करना पड़ा।
1999 में भाजपा को पुनः 182 सीटें मिलीं और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 306 सीटें प्राप्त हुईं। एक बार पुनः श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा-नीत एनडीए सरकार बनी। इस सरकार ने विकास के अनेक नए प्रतिमान स्थापित किए। पोखरण परमाणु विस्फोट, अग्नि मिसाइल का सफल प्रक्षेपण, और कारगिल विजय जैसी सफलताओं ने भारत का कद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऊँचा किया। राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य में नई पहल, कृषि, विज्ञान, और उद्योग के क्षेत्रों में तीव्र विकास, साथ ही महंगाई को नियंत्रित रखने जैसी उपलब्धियाँ इस सरकार के खाते में दर्ज हैं।
भारत-पाक संबंधों को सुधारने, नक्सलवाद, आतंकवाद, जम्मू-कश्मीर, और पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववाद जैसी आंतरिक समस्याओं पर प्रभावी कदम उठाए गए। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुदृढ़ कर सुशासन और सुरक्षा को केंद्र में रखते हुए देश को समृद्ध बनाने की दिशा में निर्णायक कदम उठाए गए।
वर्तमान स्थिति
आज भाजपा देश में एक प्रमुख राष्ट्रवादी शक्ति के रूप में उभर चुकी है और सुशासन, विकास, एकता, और अखंडता के लिए कृतसंकल्प है। 12 करोड़ से अधिक सदस्यों के साथ भाजपा न केवल भारत, बल्कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। देश के 21 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। आज पंचायत से लेकर संसद तक भाजपा की यशोदुंदुभि (trumpet of fame) बज रही है। देश की हर समस्या का समाधान खिलता कमल बन चुका है।
2014 में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। फिर 2019 और 2024 में पुनः उनके नेतृत्व में सरकार बनी, जो आज ‘सबका साथ, सबका विकास’ के उद्घोष के साथ गौरव संपन्न भारत का पुनर्निर्माण कर रही है। 2014 में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा लगभग 11 करोड़ सदस्यों वाली विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनी। वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा के नेतृत्व में यह संख्या 12 करोड़ से अधिक हो गई है।
26 मई, 2014 को श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। उनके नेतृत्व में भाजपा सरकार ने कम समय में अभूतपूर्व उपलब्धियाँ हासिल कीं। विश्व में भारत की गरिमा को पुनःस्थापित किया गया और राजनीति में लोगों का विश्वास बहाल हुआ। अनेक अभिनव योजनाओं जैसे ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘जन धन योजना’, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के माध्यम से नए युग की शुरुआत हुई। अंत्योदय, सुशासन, विकास, और समृद्धि के मार्ग पर देश अग्रसर है।
तीन तलाक की कुप्रथा को समाप्त कर मुस्लिम बहनों को संरक्षण दिया गया। हाल ही में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पारित कर वक्फ के नाम पर हो रही लूट और संपत्तियों के अवैध कब्जे को रोकने का कार्य किया गया।
भारतीय राजनीति में भाजपा का योगदान
राष्ट्रीय अखंडता, कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय, धारा 370 की समाप्ति, और पृथकतावाद से निरंतर संघर्ष करने वाली एकमात्र पार्टी भारतीय जनसंघ और बाद में भाजपा रही है। गोवा मुक्ति आंदोलन, बेरुबाड़ी, और कच्छ समझौते जैसे मुद्दों पर भी भाजपा ने राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा की। परमाणु शक्ति संपन्न भारत बनाकर अटल जी की सरकार ने शत्रुओं को स्पष्ट संदेश दिया।
लोकतंत्र, विकास, और रक्षा
स्वतंत्रता के बाद जब विपक्ष कमजोर था, तब जनसंघ ने लोकतंत्र को सशक्त विपक्ष प्रदान किया। 1967 में जनसंघ दूसरा बड़ा दल बन गया। आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनसंघ ने अभूतपूर्व संघर्ष किया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, और श्री नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओं ने भारतीय लोकतंत्र को विकल्प और नेतृत्व प्रदान किया।
विचारधारा
राजनीति केवल सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं, अपितु समाज को प्रगति पथ पर ले जाने का माध्यम है। आज अधिकांश दल विचारधारा-शून्य हैं, किंतु भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, एकात्म मानववाद, और पंचनिष्ठाओं पर आधारित है। ‘भारत माता की जय’ इसकी विचारधारा का सार है। यह संकल्प है कि हम अपने पुरुषार्थ से भारत को परम वैभव तक पहुँचाएँगे।
सुशासन
ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ताओं की शक्ति और सरकार का सुनियमन सुशासन की गारंटी है। पिछले 11 वर्षों से श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सकारात्मक सुशासन की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है।
निष्कर्ष
आज भाजपा केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि भारत के जन-मन की आशा बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वैश्विक नेतृत्व, श्री अमित शाह का कुशल रणनीतिक कौशल, और श्री जगत प्रकाश नड्डा का संगठन तंत्र, साथ ही निस्वार्थ समर्पित कार्यकर्ताओं की टोली, भाजपा को विश्व के सभी दलों से विशिष्ट बनाती है। यह सुनिश्चित है कि आने वाले समय में भारत विश्व का नेतृत्व करेगा और उसका आधार भारतीय जनता पार्टी ही बनेगी।
सुरेन्द्र शर्मा
प्रदेश कार्य समिति सदस्य
भारतीय जनता पार्टी, मध्य प्रदेश
जिला प्रभारी, राजगढ़
पूर्व प्रदेश संगठन मंत्री, अभाविप
मोबाइल: 9074600001
ईमेल: surendrasharmabjp@gmail.com