सिंधिया राजवंश- जीवाजीराव से ज्योतिरादित्य तक कुछ नहीं बदला - Gwalior Royal Family

भारत सन 1947 में आजाद हुआ और आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने जा रहा है। हम ना केवल डिजिटल हो गए हैं बल्कि अंतरिक्ष में अपने आधुनिक और महान होने के चिन्ह बना रहे हैं। सन 1947 से लेकर 2023 तक इन 76 सालों में ग्वालियर चंबल संभाग में भी बहुत कुछ बदल गया है परंतु सिंधिया राजवंश का रवैया आज तक नहीं बदला। जीवाजीराव से लेकर ज्योतिरादित्य तक कुछ नहीं बदला। 

जीवाजीराव और ज्योतिरादित्य

सन 1947 में जब भारत आजाद हुआ और 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर पर पहली बार भारत का राष्ट्र ध्वज लहराया तब ग्वालियर में ध्वजारोहण नहीं हुआ, क्योंकि ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया अपने देश की सरकार से नाराज थे। 
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भी यही है। 2018 में इतनी मेहनत से कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन ग्वालियर में जश्न नहीं मना क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी ही पार्टी की सरकार से नाराज थे। 

सब जानते थे कि ग्वालियर का विलय भारत में होगा लेकिन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने विलय के दस्तावेजों पर साइन करने में 10 दिन का समय लगाया। भारत में तिरंगा 15 अगस्त को लहराया था ग्वालियर में 25 अगस्त को तिरंगा लहराया। 
सब जानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पार्टी नहीं बना सकते लेकिन भाजपा में शामिल होने में समय लगाया। जब तक कांग्रेस की सरकार नहीं बन गई। जब तक उन्हें अपमानित नहीं किया गया। तब तक उन्होंने राष्ट्रवाद की तरफ कदम नहीं बढ़ाया। 

आजादी समारोह के अवसर पर महाराजा जीवाजीराव सिंधिया चाहते थे कि ग्वालियर में भारत का राष्ट्र ध्वज नहीं बल्कि सिंधिया राजवंश का ध्वज लहराया जाए। 
ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चाहते हैं कि, उनका नाम पार्टी के नाम से पहले आए। उनके समर्थक पार्टी के नहीं बल्कि उनके प्रति वफादार रहें।