कभी बीमारु राज्य का दर्जा प्राप्त मध्यप्रदेश इस वर्ष चुनावी वर्ष के मध्य में प्रवेश कर चुका है। इन 05 वर्षों में राजनीतिक रुप से अनेक अप्रत्याशित घटनाक्रम हुए जो इस राज्य के स्वभाव के विपरीत थे।
मध्यप्रदेश में वर्तमान सरकार की झोली में चुनाव में दिखाने के लिए अनेक उपलब्धियां हैं। जिस प्रदेश में लगभग 10-12 वर्ष पूर्व एमबीबीएस की कुल 620 शासकीय सीट्स थीं वहां आज 2000 से अधिक शासकीय सीट्स हैं।
अमृत योजना के माध्यम से कुछ अपवादों को छोड़कर हर घर में जल पहुंच रहा है व सीवरेज की व्यवस्था सुदृढ़ हुई है।
बुजुर्गो की तीर्थ दर्शन योजना हो या लाड़ली लक्ष्मी योजना व लाड़ली बहना योजना, इनके रूप में इस सरकार ने जनहितैषी होने का तमगा हासिल किया है।
हालांकि सरकार के सामने उपलब्धियों के साथ ही अनेक चुनौतियां भी हैं। केंद्र सरकार की स्मार्ट योजना को पूर्ण रुप से लागू ना कर पाना सरकार में लालफीताशाही के अत्यधिक दखल को भी दर्शाती है। ग्वालियर जैसे शहर में वर्षों पुरानी मजबूत सड़कों को स्मार्ट करने के नाम पर नष्ट कर दिया गया है।
समय- समय पर प्राकृतिक आपदाएं भी इस सरकार की परीक्षा लेती रहती हैं। सरकार को अभी हाल ही में राजधानी के सतपुड़ा भवन में हुई आगजनी की घटना को "आई ओपनर" की तरह ही लेना चाहिए जहां फायर ब्रिगेड सिस्टम पूरी तरह फेल हो गया और किसी इमारत की आग बुझाने के लिए मध्यप्रदेश को संभवतः पहली बार केंद्र की मदद की आवश्यकता महसूस हुई थी। इन सभी असफलताओं का श्रेय "सरकार" को कम "सरकारी" को अधिक जाता है।
अमेरिकी राजनीतिज्ञ बॉबी जिंदल के अनुसार "लालफीताशाही में पुनर्निर्माण के लिए काम कर रहे व्यक्तियों और समुदायों के प्रयासों को धीमा करने की प्रवृत्ति होती है।" अतः सरकार को जनहितैषी कार्यों और योजनाओं को और बेहतर ढंग से लागू करने के लिए लालफीताशाही पर नकेल कसनी ही होगी क्योंकि नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी अंततः सरकार की ही होती है। ✒ Dr.Pravesh Singh Bhadoria