जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारत के प्रयास काफी नजर आते हैं परंतु परिणाम नजर नहीं आ रहे। सरकार ने राष्ट्रीय विद्युत तिथि 2022 का मसौदा तैयार कर लिया है, जो काफी आकर्षक है परंतु 2022 का टारगेट आधा रह गया। सरकार की इस लापरवाही के कारण लोगों की जिंदगी और मुश्किल होगी। दिन का तापमान बढ़ेगा और रात का तापमान ज्यादा घटेगा। कई नई तरह की बीमारियां पैदा होती रहेंगी।
नेशनल इलेक्ट्रिसिटी पॉलिसी 2022 में सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि और वर्ष 2030 तक कोयले से बनने वाली बिजली में कमी आने की बात कही गई है। प्रस्तावित योजना के मुताबिक वर्ष 2030 तक कुल उत्पादित बिजली में कोयले से बनने वाली बिजली का प्रतिशत घटकर 50 रह जाएगा, जो वर्तमान में 70 फीसद है।
राष्ट्रीय विद्युत नीति के मसविदे में वर्ष 2027 और 2030 तक स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होने की बात कही गई है। इसके अलावा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की इष्टतम उत्पादन क्षमता मिश्रण रिपोर्ट की तुलना में 2020 में जारी की गई कोयले की क्षमता में गिरावट देखी गई है।
इसमें दिखाई गई भावी स्थितियां पिछले साल ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 में व्यक्त किए गए संकल्पों के मुकाबले ज्यादा अच्छी तस्वीर पेश करती नजर आती हैं। भारत के नए नेशनली डिटरमाइंड कमिटमेंट्स (एनडीसी) के मुताबिक देश ने वर्ष 2030 तक अपने यहां स्थापित कुल ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा क्षमता की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 50% करने का लक्ष्य तय किया है।
हालांकि देश की बिजली योजना के मसविदे के मुताबिक वर्ष 2027 तक भारत की कुल उत्पादित ऊर्जा में गैर जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 57% होगी जो वर्ष 2032 तक 68% हो जाएगी।
वर्ष 2018 में जारी भारत की पिछली बिजली योजना में वर्ष 2027 तक देश में 150 गीगावॉट स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता विकसित करने का लक्ष्य तय किया था जबकि नई बिजली योजना के मसविदे में वर्ष 2027 तक के इस लक्ष्य को बढ़ाकर 186 गीगावॉट कर दिया गया है।
एम्बर के इलेक्ट्रिसिटी डाटा एक्सप्लोरर के मुताबिक वर्ष 2016 से 2021 के बीच भारत में अक्षय ऊर्जा क्षमता में सालाना 19% की दर से वृद्धि हुई है। इस दौरान भारत में अपनी स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में सालाना 45% की औसत दर से इजाफा किया है। जहां सौर ऊर्जा क्षमता में दोहरे अंकों में बढ़ोतरी हो रही है वही इसी अवधि में पवन ऊर्जा की विकास दर 7% ही रही।
हालांकि भारत ने हाल के वर्षों में अक्षय ऊर्जा क्षमता में दोहरे अंकों में वृद्धि की है मगर इसके बावजूद वह वर्ष 2022 तक के लिए निर्धारित 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका है। वर्तमान में भारत की सौर तथा पवन ऊर्जा क्षमता 90 गीगावॉट ही ही है।
कुल मिलाकर हम बातें बहुत अच्छी करते हैं परंतु भारत की राज्य सरकारें इतना अच्छा काम नहीं कर रही है। उन्हें जलवायु परिवर्तन की चिंता ही नहीं है। राज्यों की सरकारें केबल उन्हीं मुद्दों पर ध्यान दे रही है जिनसे वोट प्रभावित होते हो।