अभी अभी हाल ही में मोहाली विश्वविद्यालय में एक घटना सामने आई है । यह बहुत ही निंदनीय और चिंताजनक है । निंदनीय इसलिए क्योंकि यह घटना छात्राओं की इज्जत से खिलवाड़ करती है और चिंताजनक इसीलिए क्योंकि इसकी कर्ताधर्ता उनकी सहपाठी छात्रा है।
पीड़ित छात्राओं ने आरोप लगाया है कि उनकी सहपाठी छात्रा ने लगभग 60 से 80 छात्राओं का स्नान करते हुए वीडियो बनाया है। फिर उसने अपने कथित पुरुष मित्र के साथ उन्हें साझा कर दिया है ।पुरुष मित्र ने उन वीडियोस को सोशल मीडिया साइट्स पर अपलोड कर मोहाली विश्वविद्यालयों की छात्राओं की इज्जत की प्रदर्शनी लगा दी।
यह कोई पहली घटना नहीं जब किसी पुरुष ने वहशीपनकी सीमा पार कर दी हो। वर्ष 2018 में दिल्ली विश्वविद्यालय में होली मिलन समारोह के दौरान छात्रों ने वीर्य से भरे हुए गुब्बारे छात्राओं पर फेंके थे । इसी प्रकार की घटना जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से देखने को भी मिली थी जब एक शोधार्थी छात्रा के साथ उसी के सहपाठी ने परिसर में छेड़छाड़ की थी।
आमतौर पर सामाजिक परिदृश्य में देखें तो छात्रजीवन में 12वीं कक्षा में आने तक छात्र - छात्राएं बाल्यवस्था के अंत में और युवावस्था के मुहाने पर होती है । परिवार से दूर , कॉलेजों का खुला वातावरण और शारीरिक रसायन (बायोलॉजिकल केमिकल) में बदलाव बाल्यवस्था से युवावस्था के बदलाव के चरण को और गति दे देते है । आज के डिजिटल युग में इस गति को और भी पंख लग जाते हैं । आज अश्लील कंटेंट की कमी नहीं है ।कोई उम्र का बंधन नहीं है और वैसे भी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी हमें सिखा रही है कि बोलने से सब कुछ होता है । जब हम बाल्यावस्था और युवावस्था के बदलाव के दौर में होते हैं तब कई सवाल हमारे मन में होते हैं उस वक्त यह अश्लील सामग्री हमारी उत्तेजना को और बढ़ा देती है। कोई रोक टोक न होने के कारण वह छात्रों को गलत दिशा में मोड़ देती है। यहीं छात्र पहले जो बंद कमरे में देखते थे अब वही खुले आसमान में देखने लगे है ।
विश्वविद्यालय परिसर में हो रही घटनाओं को हमें सीमित रूप में नहीं देखना चाहिए । ऐसा नहीं है कि आगे ऐसी घटनाएं नहीं होंगी और ना ही यह पहली घटना है अर्थात यह घटना स्वयं आदि और अंत नहीं है। व्यापक रूप से देखने पर समझ में आता है कि यह घटना तो केवल परिणाम रूपी सामने आई है। इसके हमें कारण रूपी समस्याएं ढूंढने होंगे ।
इसके कारण निम्न हो सकते हैं -
-आज की शिक्षा में नैतिकता की कमी और भौतिकता वाद का चरम पर होना
आज करुणा दया संस्कार जैसे शब्द किसी रद्दी की दुकान में पड़ी हुई पुरानी किताब में ही देखने को मिलते हैं । शिक्षा व्यवस्था का शिक्षा के इन पहलुओं से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। नैतिकता की कमी की वजह से हमारी सोच छोटी होती जा रही है। नैतिकता ही वृहद रूप में इंसानियत का रूप ले लेती है , परंतु आज इंसान में इन दोनो की कमी महसूस की जा सकती है।
-बात जब हमारे नैतिकता की हो रही है तो बात आचरण की भी होनी चाहिए । हमारा आचरण बंद कमरे में अलग होता है और सबके सामने अलग। हमारा आचरण कैसा हो यह शास्त्रों में उल्लेखित किया गया है आत्मदाह आत्म ना प्रतिकूल आनी परेशान ना समाचार हमारा आचरण वैसा ही हो जैसा हम स्वयं के लिए उचित समझते हैं ।
-धर्म की महत्ता कम और अर्थ का प्रभाव ज्यादा होना
वर्तमान समय में जिसके पास ज्यादा अर्थ( धन) है वह उतना ही प्रभावशाली है । आज किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि है पैसा कैसे कमाया जा रहा है ।बस पैसा आना चाहिए ।इसी को कमाने की उठापटक में जीवन शैली पूरी तरह से बदल गई है । हमारा खाना पीना बदल गया है और जब अन्न बदल गया तो मन क्यों नहीं बदलेगा । कहीं ऐसा तो नहीं कि अर्थ की चाह में अनर्थ कमाया जा रहा है।
हमे स्वयं इस पर आत्ममंथन करना चाहिए । आप भी स्वयं किसी के भाई और बेटे हैं । आपकी की भी बहन और मां है । कल आप के भी बेटे और बेटी होगी । हम उन्हे किस तरह का वातावरण देना चाहते है ।
फ़िलहाल, कानूनन इस घटना की गंभीरता से जांच होनी चाहिए । ऐसा क्या हुआ जो छात्रा स्वयं वीडियोस बना कर देने लगी ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आरोपी छात्र और उसके सहपाठी किसी अंतरराष्ट्रीय गिरोह का हिस्सा हो ? हॉस्टल वॉर्डनो को भी अपने स्वभाव में नरमी लाना चाहिए ।उन्हे सहिष्णु होना चाहिए ताकि अगर कोई छात्र - छात्रा ऐसे किसी षड्यंत्र का शिकार होते हे तो वो हॉस्टल वार्डेनो को बता सके ।इस घटना से सबक लेकर हमारे कॉलेज परिसर में एक नीतिगत व्यवहार की सीख देना शुरू करना चाहिए । परिवर्तन एक दम से नहीं आएगा परंतु हमे उस दिशा में कदम तो बड़ाना ही चाहिए।
लेखक:- रजत शर्मा, द्वितीय वर्ष (मास्टर्स), पत्रकारिता और जनसंचार विभाग ITM UNIVERSITY GWALIOR