दीपों के त्यौहार दिपावली में बस कुछ ही दिन शेष हैं। यह सिर्फ त्यौहार ही नहीं बल्कि सनातन धर्म मानने वालों की भावना है। इसे सनातनी आस्था के प्रतीक श्रीराम के अयोध्या वापसी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है जिसमें दीपों का महत्व ही है। लेकिन अब दिवाली का महत्व पटाखे फोड़ने को भी माना जाने लगा है। आप जितने पटाखे फोड़ेंगे उतने ही अधिक हिंदूवादी कहलायेंगे।
वैसे अक्सर कुछ लोग पटाखे विहीन दिवाली मनाने की भी बात करते हैं जिसे अधिकांश लोग हिंदूविरोधी मानसिकता कहकर खारिज कर देते हैं। क्या असल में आज प्रदूषण वाले पटाखे फोड़ने का समर्थन करना चाहिए? जबाव है बिल्कुल नहीं। इसका कारण है कि कोरोना के कारण अधिकांश लोगों के फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। जो खतरनाक प्रदूषण को अब झेल नहीं सकते हैं।
अतः बेहतर यही होगा कि इस दिवाली सिर्फ दीपक जलाकर, मतभेद मिटाकर ही मनायी जाये ना कि पटाखे चलाकर। जिससे हम पर्यावरण को तो बचायेंगे ही साथ ही कोरोना से प्रभावित व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा भी कर सकेंगे। वैसे भी राष्ट्रवाद के नाम पर चीन का विरोध करने वालों को चीनी आविष्कार "बारूद" से परहेज़ करना ही चाहिए।