✒ लेखक: सतीश भारतीय- प्रकृति एक ऐसा शब्द है जिसकी आहट सुनने से हमारे मस्तिष्क में कल-कल, छल-छल बहते झरनों का स्वर और पक्षियों की चहचहाहट से लेकर पेड़-पौधे, फल-फूल, पहाड़, मिट्टी की सुगंध, शीतल हवा,मधुर नीर आदि का दृश्य प्रादुर्भूत होने लगता है तथा कुदरती शोभा की सुरमयी आवाजें हमारे कानों में गूंजने लगती हैं जिससे हृदय में आमोद और उछाह की धारा प्रवाहित होने लगती है तथा ज्ञात होता है कि यह प्रकृति वास्तविक शांति और उल्लास की अनुभूति है।
मगर हमारे दिमाग में यह प्रश्न प्रजनित होना भी लाजमी है कि प्रकृति ने हमें क्या दिया और हमने प्रकृति को क्या दिया फिर उसके बदले वापस प्रकृति ने हमें क्या दिया यदि इसी संदर्भ में आगे बड़ा जाए तो जैसा कि प्रकृति ने हमें जल, जंगल, जमीन, हवा, प्रकाश, पेड़-पौधे, आदि कुछ दिया और अब बारी आती है हमारी तो हमने प्रकृति को क्या दिया, प्रदूषण, गंदगी, वृक्ष दोहन, रासायनिक पदार्थ, जल दुष्प्रयोग तथा प्राकृतिक संसाधन का दुरुपयोग आदि कुछ गलत उपयोग किया हमने और दिया जब हमने प्रकृति को यह सब दिया तो प्रकृति ने वापस हमें क्या दिया बाढ़, तूफान, सूखा, भूकम्प, जैसी आदि प्राकृतिक आपदायें जिससे कुछ ही पलों किसी भी व्यवस्थित जगह का नक्शा तब्दील होकर अव्यवस्थित हो जाता है।
आज के दौर में जो प्राकृतिक परिवर्तन हमें देखने मिल रहें वह कहीं ना कहीं मनुष्य द्वारा प्रकृति से किये गये अवांछनीय व्यवहार का ही अस्बाब है हमारे देश को गांवों का देश कहा जाता था और कहा जाता है क्योंकि आज से ही नहीं वरन् प्राचीन युग से भारत की अधिकतम जनसंख्या गॉव में निवासरत् है लेकिन आज ग्रामीण तबके के भी प्राकृतिक संसाधन ध्वस्त होते जा रहे है इसकी वजह प्रमुख रूप वनों का दोहन भी है तथा इस दौर में एक तो जंगलों में चोरी से वन काटे जा रहे है।
दूसरी ओर हमारी सरकारें भी यहां-वहां शहरीकरण और विकास के नाम पर वनों और प्राकृतिक संसाधनों को चौपट कर रहीं हैं ऐसा ही एक उदाहरण हमारे सम्मुख मध्यप्रदेश से है जिसे देश का ह्रदय भी कहा जाता है यहां के छतरपुर जिले के बक्सवाहा में मध्यप्रदेश सरकार नें 2 लाख 15 हजार वनों की कटाई का इख्तियार एक निजी कंपनी के हाथों में सौप दिया है अनुमान के मुताबिक 382.131 हेक्टेयर के इस जंगल क्षेत्र के कटने से 40 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के 2 लाख 15 हजार 875 पड़ों को काटा जायेगा। वहीं यहां की आवाम का रूझान जंगल को कटने से बचाने की ओर है।
गांव कलेक्शन की रिपोर्ट 2020 के अनुसार मध्यप्रदेश में 40 फीसदी जंगल निजी कंपनियों को देने की तैयारी भी हो रही है तथा आपको इत्तला कर दें कि आलम यह भी है कि देश में जिस गाँव रैणी से चिपकों आंदोलन का आगाज हुआ आज उसी गांव का अस्तित्व खतरे में है चिपको आंदोलन की नेता गौरा देवी का गांव रैणी हाल ही के दिनों की बारिश से पूरी तरह असुरक्षित हो गया है गांव के ठीक नीचे की ओर से जमीन खिसक रही है दशा यह कि 20 साल पहले गांव में लगाई गई गौरा देवी की प्रतिमा 17 जून को हटा दी गयी है।
वर्ष 2009 में भारत जंगल नुकसान में 10 वे पायदान पर था और सालाना रिपोर्ट देखें तो भारत में ईटीवी की 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक 30 लाख 36 हजार 642 पेड़ों की कटाई की गई और यह सालाना आंकड़े है इन आंकड़ों से सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात यह है कि इससे हमारे जंगल नष्ट होते जा रहे जिससे इंसान पर तो इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है लेकिन उससे भी ज्यादा गंभीर विषय यह है कि जंगल नष्ट होने से हमारे वन्यजीवों का घर तबाह हो रहा है और दिन-ब-दिन हमारे वन्यजीव खत्म होते जा रहे है जिससे पर्यावरण की न सिर्फ रौनकता खत्म हो रही बल्कि जंगल भी सूने पड़ गये है।
अब तो आलम यह हो गया है कि ग्रामीण अंचलों में चिड़ियां, कौआ, कोयल, कबूतर, तोता, तितलियां, भवरे, बन्दर, गिलहरी, बिल्ली आदि भी गुम होते जा रहे है इस वक्त आसमान खाली नजर आता है अब न वो परिंदे दिखते है ना वो जीव जन्तु जो हमारें ग्रामीण भूखण्डों में घर के आगनों में इठलाते थे और हमारे चारों ओर चक्कर लगाते थे। वहीं सबका साथ सबका विकास में अब मानव का ही विकास हो रहा है लेकिन पशु-पक्षियों और वन्यजीवों के मुस्तकबिल पर तो अंधेरे की रेखाएं ही दिखाई दे रहीं है इनका तो विकास अधूरा ही है।
इस दौर को आप गौर देखें तो शायद आप समझ पायें कि हम किस ओर जा रहें है एक तरफ प्राकृतिक संसाधन खत्म होते जा रहे है दूसरी ओर जनसंख्या में भीषण इजाफा हो रहा है। 2020 में उत्तर प्रदेश आजमगढ़ जैसे जिले से 17 छोटी-बड़ी नदियां सूखने जैसी भी खबरें हमारे सम्मुख आयीं। दॅ लैंजेट की रिपोर्ट के अनुसार देश में वायु प्रदूषण से मरने वालो का आंकडा़ 2019 में 17 लाख रहा था जिसमें सबसे ज्यादा मौते प्रदूषण से उत्तर प्रदेश में हुई।
वहीं सैन्य विशेषज्ञों के मुताबिक 2030 तक वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन जायेगा जलवायु परिवर्तन इस रिपोर्ट के अनुसार 2040 तक जबरिया विस्थापन और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होने की संभावना है दूसरी ओर डब्ल्यूडीसीडी के मुताबिक भारत का 30 फीसदी इलाका मरूस्थल में बदल चुका है और सबसे ज्यादा दुर्भेद दशा 8 राज्यों की है जिनमें भारत के 21 जिलों में 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा मरुस्थल में तब्दील हो गया है।
जून 2021 की यूएनडीडीआर की रिपोर्ट से ज्ञात हुआ है कि पिछले 20 वर्षों में भारत सहित दुनियां के 150 करोड़ लोगों को सूखे ने प्रभावित किया है 1998 से 2017 तक 150 करोड़ से भी ज्यादा लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए है जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 9.2 लाख करोड़ रूपये का नुकसान हुआ है और डाउन टू अर्थ के अनुसार भारत के उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग 24 घंटे में 65 जगह लग गयी थी जिससे 1 अक्टूबर 2020 से लेकर 4 अप्रैल 2021 तक 1297.43 हेक्टेअर जंगल जल चुका था जो कि 2400 फुटबाल मैदानों के समतुल्य होता है।
वहीं 1970 के बाद से नदियों में रहने वाली प्रजातियों की आबादी में 84 फीसदी की कमी आई है एक नए अध्ययन् में कहा गया है कि दुनिया में केवल 17 फीसदी नदियां ऐसी बची हैं, जिनमें बह रहा पानी साफ व ताजा है। ये नदियां भी इसलिए बची हैं, क्योंकि ये उन क्षेत्रों में बह रही हैं, जिसे पहले ही संरक्षित घोषित किया जा चुका है।
इन सब प्राकृतिक घटनाओं और मुद्दों को देखते हुए इस कल्प में ऐसा विदित हो रहा है कि इंसान अपने आप को जितना महफ़ूज़ करना चाहता है तथा जितना शारीरिक श्रम कम करने लिए तकनीकी का निर्माण करता जा रहा है उससे कहीं न कहीं प्राकृतिक संसाधन क्षतिग्रस्त हो रहे हैं और प्रकृति को क्षति पहुंच रही है एवं तकनीकी से अतिशयोक्तिपूर्ण दुनियाँ का प्रणयन हो रहा है।