बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से जूझता शिक्षित युवा वर्ग

काम से पहचान है, काम से सम्मान
युवा मन क्या करे, बेरोजगार पड़ा है नाम
रोजगार की आस में, फिरे दफ्तर रोज
डिग्री लेकर दौड़ रहा, पूरी कब होगी खोज !  

कहते है आज का युवा देश का भविष्य है और ये भविष्य हमारे देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे । देश में युवा पिढ़ी अपने सुन्दर एवं सुखमय सपनो को लेकर आपने आप को प्रशिक्षित काबिल एवं कौशल के लिए तैयार कर रहे है कि आगे जाकर देश की प्रगति में अपनी हिस्सेदारी देकर कुछ कर दिखाना है एवं अपने एवं अपने परिवार को उचित देखभाल कर आपने आप को भी साबित कर करना है । इसके लिए समय के साथ-साथ सभी में शिक्षित एवं कौशल विकास को लेकर काफी सजकता आई है । आजादी के बाद शिक्षा का कुशल प्रबंधन से आज देश की शिक्षा की दर में सराहनीय इजाफा हुआ है । आज़ादी के समय भारत की साक्षरता दर मात्र बारह प्रतिशत थी जो बढ़ कर लगभग चोहत्तर प्रतिशत हो गयी है । भारत फिलहाल अमेरिका और चीन की तुलना में युवा देश है और आगामी दशकों में भी इसके युवा बने रहने की संभावना है। भारत की आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अब 25 साल या अधिक उम्र का है । 25 साल से कम उम्र के लोगों का देश की आबादी में 46.9 प्रतिशत हिस्सा है । हर साल युवा वर्ग बड़ी संख्या में अपनी शिक्षा पूर्ण कर निकल रहे है । एक बहुत बड़ी भीड़ के रूप में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है । शिक्षा की कोई भी स्ट्रीम की बात करे इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रोद्योगिकी, कृषि, सिविल, इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल, टेक्निकल आदि क्षेत्रो में हर साल युवाओं की भीड़ बढ़ती ही जा रही है । इन शिक्षित बेरोजगार युवाओं की तुलना में इनकी योग्यता के अनुसार रोजगार के नहीं मिल पाना आज की एक सबसे बड़ी ज्वलंत समस्या है । सरकार एवं समाज को इस ओर ध्यान देने की निन्तंत आवश्यकता है । वह हर दिन रोजगार पाने के लिए लम्बी कतारों में खड़े हो जाते है और शिक्षित होने के बावजूद बहुत युवको को उचित नौकरी नहीं मिल पाती है । लाखो रूपए लगाकर पढ़ने वाले बड़ी डिग्रीयों के साथ पास हो जाते है। मगर नौकरी पाने के लिए उन्हें अक्सर धक्के खाने पड़ते है । एक छोटी सी सरकारी नौकरी के लिए जिसकी शैक्षिक योग्यता 8वीं मांगी गई हो उसमे स्नातक से स्नातकोत्तर डिग्री वाले युवाओ का भी आवेदन अधिक संख्या में आता है । युवा मन करे भी तो क्या बेरोजगार को समाज अपनी एक हीन दृष्टिकोण से देखता है, अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद जैसे उसे पढाई के नाम पर हर तरफ ताने का सामना करना पड़ता है । युवाओं को रोजगार के लिए जूझना देश के विकास के लिए एक गहरी खाई बनती जा रही है । युवा वर्ग इस समस्या की मार से इतना ज्यादा परेशान है कि उसके मन में बहुत से कुण्ठित विचार घर कर लेते है और यह विचार उसके विकास में बाधक बन जाते है l बेरोजगारी के ग्रसित युवाओं अवसाद के बारे में देखते है - 

रोजगार की कमी
बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जब कोई व्यक्ति रोजगार की तलाश कर रहा है पर दुर्भाग्यवश रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे है । शिक्षित बेरजगारी किसी भी देश की प्रगति में एक बहुत अड़चन है। शिक्षित बेरोजगारी तब होती है जब कोई व्यक्ति शिक्षित होता है मगर कुशल नौकरी पाने में सक्षम नहीं होता है । जब बड़ी संख्या में युवा वर्ग ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त करते है लेकिन सीमित नौकरी के अवसर उन्हें हताश कर देते है । शिक्षित बेरोजगारी का दर भारत और अन्य देशो में हर साल बढ़ रहा है । युवा वर्गों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है और कुछ एक को नौकरी मिल पाती है और बाक़िओं को अपने काबिलियत से कम पदों की नौकरी करनी पड़ती है।

बेरोजगार युवा चिंता और तनाव से ग्रसित
बेरोजगार व्यक्ति निराशा, चिंता, तनाव जैसी समस्याओं को जन्म देता है । रोजगार पाने के लिए बेरोजगार इंसान मज़बूरी में गलत रास्ता अपना लेता है जैसे चोरी, डैकती, अपहरण, नशीले वस्तुओं का सेवन जैसे अपराधों में घिर जाता है । एक अध्धयन के अनुसार शिक्षित रोजगार की वृद्धि के कारण अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है ।

आपने आप को साबित न कर पाना
कुछ लोग केवल डिग्री के लिए पढ़ाई करते है । कई छात्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते है लेकिन इंजीनियरिंग की इंटरव्यू अपने हुनर को साबित नहीं कर पाते है। इन छात्रों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई में रूचि नहीं होती केवल डिग्री मात्र के लिए पढ़ाई करते है । इसलिए वह अपने आपको कार्यस्थल और इंटरव्यू में साबित नहीं कर पाते और बेरोजगार रह जाते है।

अकुशल कार्यबल
अर्थव्यवस्था और रोजगार दोनों किसी भी देश की रीढ़ हड्डी के सामान है। यानी देश की प्रगति इन दोनों पर निर्भर करती है। भारत जैसे विकासशील देशो में उच्च बेरोजगारी दर और अकुशल कार्यबल के कारण शिक्षित युवा अकुशल श्रमिक वर्ग की नौकरी पाने हेतु संघर्ष कर रहे है । इसलिए गरीब और अकुशल कार्यबल के पास कोई काम नहीं बचा है।

परम्परागत रोजगार का बंद होना
आजादी से पहले काम का ट्रेंड देखा जाए तो पहले सभी हाथो में कुछ न कुछ कार्य होता था । समय के साथ आधुनिकीकरण और मशीनीकरण ने बहुत से रोजगार को ख़त्म कर दिया है । गाँव एवं शहरों में बहुत से ऐसे लघु एवं कुटीर उद्योग चला करते थे जिसमें परिवार सहित सभी को एक निश्चित रोजगार मिलता रहता था परन्तु आज वह सभी पेशा एवं रोजगार बंद होने से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो रही है। 

युवाओं में छोटे काम के प्रति अरुचि
देखा जाए तो सभी युवाओं में एक दूरगामी सोच रहती है कि उसके पास कम से कम उसकी योग्यता अनुसार रोजगार अवश्य मिले इस लिए वह जीवन में संघर्ष करते रहता है । कई बार अवशर आने के बाद भी वह छोटी नौकरी करने के लिए राजी नहीं होता और मिले अवशर को ठुकरा देता है । इस कारण से वह बेरोजगारी बना रहता है । छोटे काम को छोटा समझना अवशर को खोना जैसा है । कई बार देखा गया है कि एक छोटा काम से शुरुआत कर आदमी सफलता के ऊँचे मुकाम तक पहुँच जाता है । ऐसे कोई भी अवशर को चुनौती पूर्वक लेकर अपनी योग्यता अनुसार रोजगार की तलाश की जा सकती है ।  

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में पिछड़ना
आज निजीकरण ने हर क्षेत्र में अपना हाथ बढ़ाये हुए है आप किसी भी क्षेत्र में देख लीजिये निजी कम्पनी अपनि सुविधाए एवं कार्य कुशलता से रोजगार के हर क्षेत्र में कार्य कर रही है । निजी कम्पनी या संस्थान अपना ये कार्य कार्यकुशल कर्मचारियों के हुनर एवं कार्य से कर पाते है इसलिए हर नियोक्ता चाहता है कि उसे एक कुशल कर्मचारी मिले । इसलिए वह अपने प्रोजेक्ट के अनुसार प्रतिस्पर्धा से नियुक्ति करता है । प्रतिस्पर्धा के इस दौड़ में अनेक शिक्षित युवा पीछे रह जाते है जिससे उन्हें उचित अवशर ही नहीं मिल पाता है और वह नौकरी की दौड़ में पिछड़ जाते है ।

शिक्षित बेरोजगारी गरीबी की तुलना में सबसे बड़ा अभिशाप है । देश के विकास के लिए बेरोजगारी एक प्रमुख बाधा बन कर खड़ी है । भारत में आकड़ो के तहत बेरोजगारी की संख्या 10 करोड़ पार कर गयी है । उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, ओडिसा और असम जैसे राज्य बेरोजगारी से पीड़ित है और भारत के कुछ राज्य बेहतर हालत में है । ज़रूरत है सही दिशा, योजनाओ और शिक्षा प्रणाली में बदलाव की । भारत सरकार कोशिशे कर रही है और आशा है वर्तमान में उद्योग और विभिन्न क्षेत्र में रोजगार पाने की अवस्था में सुधार होगा ।   
“आस की डिग्री टांगकर, दिन-दिन ठोकर खाए
आकाल पड़ी है नौकरी, हर दिन ये तरसाए
युवा मन कुण्ठित हुआ, सपने अधूरे है पड़े 
सुरसा बनी बेरोजगारी, दिनों-दिन और बढ़े  ”
लेखक:- श्याम कुमार कोलारे (सामाजिक कार्यकर्ता )  - छिंदवाड़ा (म.प्र.) मोबाइल : 9893573770