डॉ. प्रवेश सिंह भदौरिया। विकासशील हिंदुस्तान को विकसित भारत में बदलने की आज बेहद ज़रुरत है। इससे ना केवल भारतीयों में एक प्रकार से आर्थिक सुरक्षा का भाव आयेगा बल्कि वैश्विक स्तर पर भी राष्ट्र मजबूत होगा। हिंदुस्तान का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पूर्व का माना जाता जहां कभी आर्थिक संपन्नता एवं अनुशासन था,ऐसा माना है। फिर हिंदुस्तान में विभिन्न राज्यों के शासकों की महत्वकांक्षाओं के कारण पहले मुगलों ने तथा फिर अंग्रेजों ने राज किया। हालांकि मुगलों एवं अंग्रेजों के शासन में बहुत विशाल अंतर था।
मुगल क्रूर के साथ साथ विकास के प्रति सजग भी थे। यही कारण है कि जीटी रोड जैसी लंबी सड़क का उस समय निर्माण हुआ। जबकि अंग्रेजी हुकूमत एक व्यापारी की हैसियत से हिंदुस्तान में दाखिल हुई तथा यहां के "भीतरी विरोधाभासी विचार एवं विखंडित समाज" का फायदा उठाकर अंततः ब्रितानी रानी का राज स्थापित करके ना केवल राष्ट्र को आर्थिक रुप से कमजोर किया बल्कि अपने राष्ट्र के कानूनों को एवं शिक्षा को भारत का जरुरी हिस्सा बनवाया। इससे ना केवल आजादी के इतने वर्षों बाद भी विकसित ना हो पाने का दोष हम तब के नायकों पर थोपें जा रहें हैं बल्कि हिंदुस्तान की मूल भावना "अनेकता में एकता" को भी तोड़ते जा रहे हैं।
आज की परिस्थिति में यह शोध का विषय होना चाहिए कि देश में गरीबों की संख्या कम करने के लिए आखिर क्यों गरीबी के पैमाने को ही बदलना पड़ता है? आखिर क्यों हम आज भी पिछड़े हैं ? कहीं इसका कारण देश को हर समय चुनाव में झोंकना तो नहीं है ?
देश में भ्रष्टाचार एवं चुनाव :-
भारत में अंग्रेजी शासन के इतिहास को पढ़ने पर पाया जाता है कि वायसराय एवं अन्य अधिकारियों पर एक तयशुदा राशि ब्रिटेन पहुंचाने का अतिरिक्त दबाव हमेशा बना रहता था जिससे ना केवल अधिकारी सामान्य जनता से अतिरिक्त कर वसूलते थे बल्कि देश के विकास में एकत्रित किए फंड से भी कुछ अंश बचा लेते थे।
अमूमन यही स्थिति वर्तमान समय में है। राजनीतिक दलों को लगभग प्रतिवर्ष भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न चुनाव लड़ने पड़ते हैं। जिसे लड़ने के लिए बेशुमार खर्चा करना पड़ता है। जिसके परिणामस्वरूप अधिकारियों पर भी एक अघोषित अतिरिक्त दबाव रहता है कि वे फंड एकत्रित करके राजनीतिक दलों तक पहुंचायें। जिसके कारण भ्रष्टाचार करना ही पड़ता है एवं देश के विकास में आने वाला फंड अंतत: 100% उपयोग में नहीं आ पाता है।
05 वर्ष में एक बार चुनाव होने से ना केवल सामाजिक सोहार्द सिर्फ एक बार कुछ दिनों के लिए बिगड़ने की आशंका रहेगी बल्कि राष्ट्र पर बार-बार चुनाव का अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ेगा। इससे भविष्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश तो लगेगा ही साथ ही "क्रोनी केपिटलिस्म" की संभावना भी कम होगी तथा सरकार अंततः अपने व्यापारिक समर्थकों के अनुरूप पॉलिसी ना बनाकर देश के सबसे निचले तबके के व्यक्ति को "मुफ्तखोरी" से हटाकर उसको मजबूती एवं आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर योजनाएं बनायेगी। अतः "वन नेशन- वन इलेक्शन" वर्तमान विकासशील देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।