भोपाल। भोपाल एवं रायसेन जिले में महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा किए गए घोटाले में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने समाचार लिखे जाने तक 89 कर्मचारियों और कई अधिकारियों को सूचीबद्ध कर लिया था। केक की रिपोर्ट में बताया गया है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका के मानदेय के नाम पर 89 बैंक खातों में मनमानी रकम जमा कराई गई। अब तक तीन करोड़ रुपए से ज्यादा का मानदेय घोटाला पकड़ा जा चुका है।
जिसका मानदेय ₹6000 प्रतिमाह, उसके खाते में 1.13 लाख रुपए ट्रांसफर
कैग के मुताबिक वर्ष 2014-15 से लेकर 2017-18 के दौरान आंगनबाड़ी महिलाओं को 6 हजार रुपए मानदेय मिलता था लेकिन उपरोक्त बैंक खातों में 1.13 लाख रुपए तक के भुगतान मानदेय के रूप में किए गए।
कर्मचारी की बेटी के बैंक खाते में मानदेय का भुगतान कर दिया
कुल 89 बैंक खातों में 9 डाटा एंट्री व कंप्यूटर ऑपरेटरों हेमंत पालीवाल, जयश्री उदय, ललित नागर, सुरेंद्र कुमार मौर्य, आशीष प्रजापति, लता यादव, माया नागले, राहुल खाटरकर और दीपक शुक्ला के एवं दो खाते परियोजना कार्यालयों (पीओ) में काम करने वाले लोगों दिलीप जेठानी व काशी प्रसाद और एक खाता गोविंदपुरा पीओ में काम करने वाले एक कर्मचारी की बेटी प्रतिमा लोकवानी का था।
भोपाल के जिला कार्यक्रम अधिकारी और परियोजना अधिकारी जांच की जद में
बाकी बैंक खाताधारकों की पहचान ही नहीं हो सकी। सितंबर 2016 से लेकर अगस्त 2018 तक भोपाल के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) ने 44 बैंक खातों में 39.61 लाख रुपए कपटपूर्ण तरीके से जमा किए। इसमें से 23 खातों में परियोजना अधिकारियों ने भी पैसा जमा कराया।
एक नंबर के दो बिल, दोनों का पेमेंट कर दिया
कैग ने बताया कि भोपाल के डीपीओ ने बच्चों को दिए जाने वाले फ्लेवर्ड दूध का भुगतान 4 लाख 73 हजार रुपए जिस तारीख और बिल क्रमांक से किया, उसी तारीख और क्रमांक से 14 लाख एक हजार रुपए का भी भुगतान हुआ। जब कैग ने डीपीओ से पूछा तो उन्होंने कहा कि फर्जी हस्ताक्षर से किसी ने ऐसा किया होगा। इस राशि की वसूली करके शासन के खाते में जमा करा दी गई है।
विदिशा, मुरैना, अलीराजपुर और झाबुआ में भी गड़बड़ी
कैग के अनुसार भोपाल और रायसेन की सेंपल जांच के अलावा विदिशा, मुरैना, अलीराजपुर और झाबुआ के जिला कार्यक्रम अधिकारी व परियोजना अधिकारियों के दस्तावेजों की जांच में पता चला कि मानदेय का 65 लाख 72 हजार गलत तरीके से आहरण किया गया। बाद में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका के नाम पर जिन खातों में यह पैसा जमा कराया गया वो फर्मों के नाम पर व कर्मचारियों के परिजनों के नाम पर थे। फर्मों में संदीप कंप्यूटर और ऑफसेट मुरैना शामिल है।
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