शिवपुरी। दिन-रात मेरे स्वामी मैं भावना ये भाऊं, देहांत के समय में तुमको न भूल पाऊं ... इस भावना का सदैव स्मरण करने वाले मुनि निर्मोही सागर की रविवार सुबह 8.30 बजे समाधि हो गई, वह 85 वर्ष के थे। पिछले 5 दिनों से उन्होंने आहार की प्रक्रिया को भी कम कर दिया था और शनिवार से उन्होंने पानी भी नहीं लिया था।
12 वर्ष पहले वह गृहस्थ अवस्था को छोड़कर संसार मार्ग से वैराग्य मार्ग पर आचार्य निर्मल सागर महाराज से दीक्षित होकर आए वह मगरोनी जैन मंदिर में इन दिनों चातुर्मास कर रहे थे। मगरोनी जैन समाज से अध्यक्ष इंजीनियर प्रेमचंद जैन और वर्षायोग समिति के उपाध्यक्ष डॉ बालचंद जैन ने बताया कि गिरनार गौरव आचार्य निर्मल सागर महाराज से वह दीक्षित होकर अब से 12 साल पहले 2008 में उन्हें वैराग्य आया और उन्होंने क्षुल्लक दीक्षा अंगीकार की।
7 साल वह इसी अवस्था में रहकर धर्म साधना करते रहे और उनकी साधना को देखते हुए आचार्य निर्मल सागर महाराज ने उन्हें मुनि दीक्षा दे दी और उन्हें निर्मोही सागर नाम दिया। जगह जगह धर्मसाधना करते हुए वह सिद्धक्षेत्र सोनागिर जी पहुंचे। जहां से समाज के आग्रह पर वह चातुर्मास के लिए मगरोनी जैन मंदिर 26 जून 2020 को पहुंचे,और समाज के निवेदन करने पर 5 जुलाई को उन्होंने चातुर्मास की स्थापना मगरोनी में की थी तब से उनकी धर्मसाधना वहां चल रही थे।
मुनिश्री को अंत समय में पालकी में बिठाकर क्यो ले जाते हैं इसे बताते हुए छत्री जैन मंदिरपर धर्म साधना कर रहे मुनि सुव्रत सागर महाराज ने कहा कि जिसने जीवन संयम के साथ पाला हो उसका अंतिम समय मृत्यु महोत्सव के रुप में मनाया जाता हैं। जहां एक और संसारी प्राणी मृत्यु पर शोक करता हैं। वहीं दूसरी तरफ मुक्ति का साधक और उसके अनुयायी इस मृत्यु को शोक का माध्यम न बनाकर मृत्यु को महोत्सव को रुप में स्वीकार करते हैं।
जैसे कोई व्यक्ति पूरा मंदिर बना ले लेकिन शिखर पर कलशारोहण न कर पाए तो उसकी यात्रा अपूर्ण मानी जाती है। उसी तरह मोक्ष मार्ग का साधक जीवन भर संयम पालन करे,कठोर साधनाएं करे और अंत समय समाधि विधि पूर्वक न कर पाए तो उसकी असफलता मानी जाएगी। समाधि या सल्लेखना इस बात का सूचक है कि उसने अपने का सफल किया है। इसी उपर 1 भक्त गण उनका विमान मृत्यु को महोत्सव का रुप देत हैं।
from Shivpuri Samachar, Shivpuri News, Shivpuri News Today, shivpuri Video https://ift.tt/2Y5K2t0