आपने अक्सर समाचारों में सुना होगा, बारिश के दिनों में मौसम की जानकारी के समय बताया जाता है कि पिछले 24 घंटे में कितनी बारिश हुई। (पिछले दो दिनों यानी 48 घंटे में 27.5 एमएम वर्षा रिकॉर्ड की गई।) सवाल यह है कि वैज्ञानिक कैसे पता लगा लेते हैं कि अपने शहर में कितनी बारिश हुई है। दूसरी बड़ी बात है कि क्या अपन भी पता लगा सकते हैं कि अपनी कॉलोनी में कितनी बारिश हुई।
स्वामी विवेकानंद टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, भिलाई, छत्तीसगढ़ से माइनिंग इंजीनियर श्री मनोज कुमार बताते हैं कि किसी भी स्थान में वर्षा को मापने के लिए रेन गॉग या वर्षा मापक यंत्र का प्रयोग किया जाता है। यह यंत्र सामान्य तौर पर ऊंचे और खुले स्थान पर लगाया जाता है। इसके लिए ऐसा स्थान चुना जाता है जहां आसपास पेड़, ऊंची दीवारें ना हों। जिससे बारिश का पानी सीधे यंत्र में गिरे।
वर्षा मापने का यंत्र कैसा होता है
वर्षा मापने का यंत्र एक सिलेंडरनुमा यंत्र होता है। इसमें ऊपरी सिरे पर कीप लगी होती है या इस यंत्र का ऊपरी आकार कीप की तरह का होता है। कीप में बारिश का सीधा पानी गिरता है जो इसके नीचे लगे एक बोतलनुमा पात्र में जमा होता है। 1662 में क्रिस्टोफर व्रेन ने ब्रिटेन में पहला रेन गॉग बनाया था। वर्षामापी कई तरह का होता है। वर्षा अधिकतर इंच या सेंटीमीटर में मापी जाती है। आदर्श वर्षामापी उसे कहा जाता है जिसमें एक खोखला बेलन हो, अंदर एक बोतल रखी हो और उसके ऊपर एक कीप लगा हो। वर्षा का पानी कीप द्वारा बोतल में भर जाता है तथा बाद में पानी को मापक द्वारा माप लिया जाता है. जब अधिकारी माप लेने जाते हैं तो उन्हें इस काम में 10 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता।
वर्षा का माप कैसे लिया जाता है
जब बारिश की माप करनी होती है तो बाहरी सिलेंडर को खोलकर बोतल में जमा पानी को कांच के बने एक बीकर में डाला जाता है, इस बीकर पर मिलीमीटर के नंबर अंकित होते हैं। अब तो यंत्र में भी मिलीमीटर के अंक होते हैं। जितने मिमी पानी बीकर में आता है, वही बारिश की माप होती है। इसका मतलब ये है कि जितना ज्यादा मिमी में माप आता है, बारिश उतनी ही अधिक हुई होती है।
कितनी बार मापा जाता है
मानसून के दिनों में दिन में दो बार ये माप होता है। सुबह 8 बजे और शाम 5 बजे।
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