समय आ गया है जब बैंक और सरकार को अपने कायदे- कानून और पद्धति की विवेचना करनी होगी | बैंक का पैसा लेकर नदारद होने के वैश्विक कीर्तिमान के बाद अब एक और जो बात सामने आ रही है वो बैंको के साथ धोखाधड़ी है अकेले वित्त वर्ष २०२० में बैंको के साथ १.८५ ट्रिलियन रूपये की धोखाधड़ी हुई है |कोरोना महामारी से पैदा हुईं आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों तथा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) यानी फंसे कर्जों के बोझ से दबे बैंकों को इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का भी सामना करना पड़ रहा है|बैंक और सरकार को फौरन कुछ करना चाहिए |
यह किसी और का अनुमान नहीं है भारत की रिजर्व बैक का सत्यापित आंकड़ा है| रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष २०२० में बैंकों के साथ १.८५ ट्रिलियन रुपये की धोखाधड़ी हुई है, जो पिछले साल की तुलना में दुगुने से भी अधिक है| इसमें भी एक खास बात है कि इस हिसाब में एक लाख रुपये से ज्यादा के फर्जीवाड़े को ही गिना गया है| यदि सभी गड़बड़ियों को जोड़ लें, तो यह रकम कितनी अधिक हो जायेगी, अंदाज़ा लगाना मुश्किल है | यदि इसे मामलों के मान से देखें तो साबित होता है कि मामलों की संख्या में २८ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है |
धोखाधड़ी के ज्यादातर मामले कर्जों से जुड़े हुए हैं| सबसे बड़े ५० प्रतिशत मामले ७६ प्रतिशत रकम से जुड़े हैं, इससे साफ जाहिर है कि तमाम नियमन और निगरानी के बावजूद बैंकों की प्रबंधन व्यवस्था इस समस्या का कोई हल निकालने में नाकामयाब रही है| यह बात इससे भी पुष्ट होती है कि इस साल सामने आये बहुत से मामले बीते कुछ सालों से चल रहे थे, लेकिन उनका संज्ञान २०२० के रिपोर्ट में लिया गया है| यह सब जानते है है बैंकों से मामूली रकम कर्ज लेने के लिए आम नागरिक को कितनी परेशानी उठानी पड़ती है तथा तमाम दस्तावेजों की पड़ताल के बाद ही कर्ज मिल पाता है| ऋण वापिसी की किश्तों को वक्त पर जमा करने का दबाव भी बैंक की तरफ से होता है|
बड़ी रकम के कर्ज की मंजूरी में तो बैंकों के शीर्ष अधिकारी भी शामिल होते हैं| ऐसे में भारी-भरकम रकम को बांटने और वसूली में नाकाम रहने का जिम्मा बैंकों के प्रबंधन का है| एक सवाल ऐसे मामलों के बारे में देर से जानकारी देने का भी है| फर्जीवाड़े में कारोबारियों के लेन-देन के हिसाब और विदेशी मुद्रा भुगतान के मामले भी इनमे हैं| जबकि इनके लिए ठोस कायदे बने हुए हैं तथा निगरानी के उपाय भी मौजूद हैं| इसके बावजूद बैंकों के पैसे लेकर हजम कर जाना अगर इस कदर आसान है, तो फिर हमारी बैंकिंग व्यवस्था को गहरे आत्ममंथन की जरूरत है| जिस प्रकार से फंसे हुए कर्ज की समस्या मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ है, उसी तरह से फर्जीवाड़े के सबसे ज्यादा शिकार भी यही बैंक हुए हैं|
धोखाधड़ी के 80 प्रतिशत मामले इन्हीं बैंकों के साथ हुए हैं. रिजर्व बैंक की इस रिपोर्ट में भी माना गया है कि फर्जीवाड़े की पहचान करने में बहुत देर हो रही है| साल २०१९ -२० में इसका औसत दो साल का है, लेकिन सौ करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी पकड़ने में बैंकों को पांच साल से भी ज्यादा वक्त लगा है| इस आंकड़े को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि बैंकिंग तंत्र में बड़े पैमाने पर लापरवाही बरती जा रही है, जिसे रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने भी रेखांकित किया है| इस संबंध में तुरंत सुधार करना जरूरी है| कर्ज लेकर भाग जाने बड़ा अपराध कर्ज लेने में फर्जीवाड़ा करना है | इसमें पहले दिन से ही बदनीयत और बेईमानी कर्ज लेने वाले के मन में दिखती तो फर्जीवाड़े के जानकर अनजान बनना और ऋण स्वीकृत करना भी कोई छोटा अपराध नहीं है | ऐसी फर्जी कार्रवाई करने की योजना बनाना, उसे स्वीकृत करना या स्वीकृति के लिए राजनीतिक दबाव बनाना “राष्ट्रद्रोह” के मुकाबले का अपराध है बैंको को अपने नियमों में और सरकार को अपने दंड विधान में इस बाबत फौरन संशोधन करना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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