भोपाल। यह एक मामला कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और लोकसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा सांसद बने ज्योतिरादित्य सिंधिया (जो जनसेवा की राजनीति करने का एलान करते रहते हैं) दोनों की पोल खोलता है। ग्वालियर में स्थित THE SCINDIA SCHOOL गरीबों के बच्चों के लिए आरक्षित नहीं है फिर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस स्कूल को जमीन आवंटित करने के लिए तत्कालीन सीएम कमलनाथ से मुलाकात की और कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद का उपयोग करते हुए 212 करोड रुपए मूल्य की सरकारी (लगभग 146 एकड़) जमीन मात्र ₹100 में 99 साल के लिए लीज पर दे दी। यानी 1.01 रुपए प्रति वर्ष।
पूरी कमलनाथ कैबिनेट ने सिंधिया स्कूल को ₹1 वार्षिक पर 146 एकड़ जमीन को मंजूरी दी
जनवरी 2020 में हुई कैबिनेट में मंजूरी मिलने के बाद राजस्व विभाग ने यह आदेश 13 फरवरी 2020 को जारी किया। नेताओं पर विश्वास करने वाले लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि कैबिनेट में किसी भी मंत्री ने इसलिए इस पर कोई आपत्ति नहीं उठाई। जबकि बैठक में वह सभी कैबिनेट मंत्री मौजूद थे जो अपनी ईमानदारी और जनसेवा को गंगा के समान पवित्र बताते हैं।
क्या शिवराज सिंह के मंत्रियों की कैबिनेट सब कमेटी इस मामले की समीक्षा कर पाएगी
7 अगस्त को भाजपा की शिवराज सरकार ने कांग्रेस की पिछली कमलनाथ सरकार के 23 मार्च से आखिरी के छह माह की कैबिनेट के फैसलों के रिव्यू के लिए पांच मंत्रियों की कैबिनेट सब कमेटी बना दी है। इस कमेटी की दो बैठकें हो गई हैं, जिसमें अफसरों से कहा गया है कि वे सभी फैसलों के दस्तावेज कमेटी के समक्ष रखें। कमेटी में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा, खाद्य मंत्री बिसाहूलाल सिंह, राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह शामिल हैं। इससे पहले मंत्री समूह बना था, जिसमें नरोत्तम मिश्रा, तुलसी सिलावट और कमल पटेल थे। कैबिनेट कमेटी में तुलसी सिलावट की जगह गोविंद सिंह राजपूत को रखा गया है। कमल पटेल बाहर हो गए हैं।
शिवराज सिंह की कैबिनेट ने सिंधिया स्कूल को जमीन देने से मना कर दिया था
सिंधिया एजुकेशन सोसायटी की जमीन को लेकर बताया जा रहा है कि 2013 में विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले की कैबिनेट में भी जमीन लीज पर देने का मसला आया था। तब मुख्य सचिव आर परशुराम थे। इस समय राजस्व विभाग ने इस जमीन की फाइल तैयार हुई, लेकिन कैबिनेट ने मंजूरी नहीं दी। इसके बाद 2013 से लेकर 2018 तक शिवराज सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं किया।
कमलनाथ ने 212 करोड रुपए की जमीन ₹100 में दे दी
बताया जा रहा है कि जमीन का आंकलन करीब 212 करोड़ रुपए किया गया था। दिसंबर 2018 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के बनने के कुछ समय बाद फिर यह फाइल निकली और नए सिरे से कलेक्टर गाइड लाइन को आधार बनाकर आंकलन किया गया, जिसके कारण राशि कम हो गए। जनवरी 2020 की कैबिनेट इसे नए सिरे से रखा गया, जिसे मंजूरी मिल गई। इसके आदेश भी चंद दिनों बाद 13 फरवरी को जारी हो गए।
शिवराज सरकार ने टोकन पर जमीन आवंटन बंद कर दिया था, कमलनाथ ने शुरू कर दिया
2012 से पहले मप्र में जमीन आवंटन को लेकर एक विवाद सामने आया था। तब कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन बाद में हुआ था और टोकन राशि पर जमीन पहले मिल गई। जमीन का चिन्हांकन भी पहले हुआ। इसे लेकर मामला कोर्ट तक गया। तभी शिवराज सरकार की कैबिनेट ने निर्णय लिया कि टोकन राशि पर किसी को जमीन का आवंटन नहीं होगा। बाद में कलेक्टर गाइड लाइन पर ही कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट को जमीन दी गई लेकिन कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनते ही फैसला बदल दिया और टोकन पर जमीन का आवंटन कर दिया।
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