शिवपुरी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत भाजपा के धाकड़ उम्मीदवार के मुकाबले धाकड़ उम्मीदवार को उतारकर प्राप्त की थी। इसलिए होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से यह कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा के धाकड़ उम्मीदवार के रूप में इस बार भी वह धाकड़ उम्मीदवार उतारकर भाजपा को चुनौती पेश करेगी।
लेकिन भाजपा के संभावित उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा (धाकड़) को राज्यमंत्री बनाए जाने से कांग्रेस द्वारा धाकड़ उम्मीदवार को उतारे जाने की संभावना को धक्का लगा है। कांग्रेस में अब ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट मिलने की संभावना उज्जवल हुई है।
पोहरी विधानसभा क्षेत्र मेें धाकड़ मतदाताओं की संख्या 40 से 50 हजार के मध्य है और इसी कारण प्रमुख दल कांग्रेस या भाजपा विधानसभा चुनाव में धाकड़ उम्मीदवारों को मैदान में उतारते रहे हैं। क्षेत्र में धाकड़ जाति का प्रभाव इतना है कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने धाकड़ उम्मीदवारों को मैदान में उतारा।
इसके बाद भी जीत धाकड़ उम्मीदवार को मिली। पोहरी विधानसभा क्षेत्र में पूर्व विधायक प्रहलाद भारती को छोड़ दें तो अभी तक किसी भी विधायक को दोबारा जीतने का मौका नहीं मिला। श्री भारती अवश्य 2008 और 2013 में विजयी रहे थे। प्रहलाद भारती भी जाति से किरार (धाकड़) समुदाय से हैं। उपचुनाव में कांग्रेस में सुरेश राठखेड़ा के मुकाबले धाकड़ उम्मीदवार उतारे जाने पर भी विचार चल रहा था।
सोच का आधार यह था कि डेढ़ साल के विधायक कार्यकाल में सुरेश राठखेड़ा के खिलाफ एंटीइंकंबेंसी फैक्टर उत्पन्न हुआ है और जिसका लाभ कांग्रेस के धाकड़ उम्मीदवार को होगा। लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनुशंसा से सुरेश राठखेड़ा को मंत्री बनाकर कांग्रेस की रणनीति को धक्का पहुंचाने का काम किया है।
कांग्रेस में धाकड़ उम्मीदवार के रूप में प्रधुम्र वर्मा, विनोद धाकड़, अरविंद धाकड़, शिशुपाल धाकड, लक्ष्मीनारायण धाकड़ आदि टिकट की मांग कर रहे थे। लेकिन श्री राठखेड़ा के मंत्री बनने से धाकड़ मतों का उनके पक्ष में धु्रवीकरण होना तय माना जा रहा है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस धाकड़ उम्मीदवार उतारने की रिस्क नहीं लेना चाहेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी धाकड़ हैं और उनका धाकड़ मतों पर जातिगत आधार पर भी अच्छा प्रभाव है।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य ङ्क्षसंधिया भी सुरेश राठखेड़ा को जिताने के लिए जुटेंगे। ऐसी स्थिति में सुरेश राठखेड़ा को राज्यमंत्री बनाकर भाजपा ने धाकड़ मतों का एक तरह से ध्रुवीकरण कर लिया है। वही इसका लाभ भाजपा को बमौरी और मुंगावली क्षेत्र में भी मिलेगा। जहां बड़ी संख्या में धाकड़ मतदाता हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस अब ब्राह्मण उम्मीदवारों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है।
कांग्रेस जिलाध्यक्ष श्रीप्रकाश शर्मा ने कहा कि अब हमें अपनी रणनीति में फेरबदल निश्चित रूप से करना होगा। टिकट की दौड़ में कांग्रेस में अब पूर्व विधायक हरीवल्लभ शुक्ला का पलड़ा भारी माना जा रहा है। श्री शुक्ला पोहरी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे चुके हैं। हालांकि वह दो बार पराजित भी हो चुके हैं। एक बार वह बसपा उम्मीदवार के रूप में और दूसरी बार कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा है। लेकिन पराजित होने के बाद भी वह मुकाबले में नम्बर 2 रहे। इस कारण उनकी चुनौती को कमजोर नहीं माना जा सकता।
श्री शुक्ला के बाद टिकट की दौड़ में पूर्व मंडी अध्यक्ष एनपी शर्मा, पूर्व मंत्री गौतम शर्मा के सुपुत्र देवव्रत शर्मा और अखिल शर्मा भी हैं। इसके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा से लड़े कैलाश कुशवाह भी कांग्रेस टिकट की जुगाड़ में हैं। 2018 के चुनाव में श्री कुशवाह दूसरे स्थान पर रहे थे और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था। इसलिए कांग्रेस यदि उन्हें उम्मीदवार बनाएगी तो वह भाजपा के समक्ष मजबूत चुनौती पेश करने की स्थिति में हैं।
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