इंदौर। कोरोनावायरस के संक्रमण के कारण स्कूल बंद है और स्कूल मैनेजमेंट बेतुके ऑनलाइन क्लासरूम चलाकर मनमानी फीस वसूली कर रहे हैं। इस सब से तंग पैरंट्स ने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में एडमिशन कराना शुरू कर दिया है। यह संख्या बहुत बड़ी है, करीब 30 से 40%, क्योंकि पेरेंट्स को पता है कि कोरोनावायरस का संक्रमण अब पूरे साल रहने वाला है। बच्चों को जब ऑनलाइन एजुकेशन दिलवानी है तो फिर ऑफलाइन स्कूल की फीस क्यों दें। स्कूल वालों से तो ज्यादा अच्छा प्राइवेट ऑनलाइन एप पर पढ़ाया जाता है।
पत्रकार श्री उदय प्रताप सिंह की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी अहिल्याश्रम क्रमांक 1 स्कूल में पिछले वर्ष कक्षा नौवीं में 263 छात्रों ने प्रवेश लिया था। इसमें से 200 छात्र निजी स्कूलों के थे लेकिन ये उन निजी स्कूलों के थे, जहां कक्षा आठवीं के बाद कक्षा नौवीं नहीं संचालित होती थी। इस वर्ष कक्षा नौवीं के लिए अब तक 72 छात्र फॉर्म ले जा चुके हैं। इसमें से 50 छात्र ऐसे निजी विद्यालयों के हैं, जहां कक्षा आठवीं के बाद भी नौवीं कक्षा भी संचालित हो रही है। पिछले वर्ष इस स्कूल में कक्षा ग्यारहवीं में 175 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था जो निजी स्कूलों के थे। इसमें 168 छात्र ऐसे विद्यालयों के थे, जहां अगली कक्षा संचालित नहीं होती थी। इस वर्ष चार दिन में अब तक कक्षा ग्यारहवीं में प्रवेश के लिए 100 फॉर्म छात्र ले जा चुके हैं। इनमें से 96 छात्र ऐसे निजी स्कूलों से हैं, जहां अगली कक्षाएं संचालित होती हैं।
शासकीय अहिल्याश्रम क्रमांक 1 की प्राचार्य पूजा सक्सेना के अनुसार, प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने के बाद हमारे पास एक दिन में 80 छात्रों के फोन आ रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले इस बार ज्यादा संख्या में निजी स्कूलों के छात्रों ने एडमिशन फॉर्म लिए हैं। इस बार निजी स्कूलों से करीब 50 फीसद छात्र सरकारी स्कूल में आने की तैयारी में हैं। कई परिवार आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से छात्रों को सरकारी स्कूलों में छात्रों को प्रवेश दिलवा रहे हैं।
शासकीय नूतन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, चिमनबाग के प्राचार्य मनोज खोपकर ने बताया कि इस बार कई अभिभावक अपने बच्चों के साथ आकर सरकारी स्कूलों को देख रहे हैं और सुविधाओं की जानकारी ले रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले इस बार हमारे स्कूल सहित सभी सरकारी स्कूलों में ज्यादा संख्या में प्रवेश होने की संभावना है।
शासकीय उमावि नंदाननगर के प्राचार्य राजू मेहरा के अनुसार, हमारे स्कूल में इस बार अभी तक निजी स्कूलों के 30 फीसदी छात्रों ने प्रवेश लिया है और अब भी कई छात्र आवेदन पत्र लेकर जा रहे हैं। इस बार पिछले साल के मुकाबले निजी के स्कूलों के छात्रों के ज्यादा प्रवेश होने की स्थिति बन रही है।
केस-1: दुकान नहीं चल रही, बंद चल रहे प्राइवेट स्कूल की फीस नहीं भर सकते
बाणगंगा स्थित गोविंद कॉलोनी में रहने वाली रिया सेन ने दसवीं तक पढ़ाई निजी स्कूल में की और इन्हें इस बार 69 प्रतिशत अंक आए। इनके पिता लाल बाबू फर्नीचर का काम करते हैं। लॉकडाउन के कारण फर्नीचर का काम बंद रहा। बेटी को दसवीं तक निजी स्कूल में पढ़ाया। लॉकडाउन व कोरोना संक्रमण के कारण उनका काम काज अच्छा नहीं चल रहा। बजट इतना नहीं कि बेटी को निजी स्कूल में पढ़ा सके। इस वजह से अब उसका सरकारी स्कूल में प्रवेश करवा रहा है।
केस-2: चार बेटियां है, रोजगार नहीं है
बाणगंगा क्षेत्र में रहने वाली नंदिनी प्रजापत निजी स्कूल में पढ़कर दसवीं में 51 प्रतिशत अंक लाई। पिता मजदूरी करते हैं और मां घर में सिलाई मशीन चलाती हैं। परिवार में चार बेटियां हैं। मां रिंकी प्रजापत के अनुसार लॉकडाउन के कारण पति को तीन महीने तक घर पर रहना पड़ा तो सिलाई का कामकाज भी ज्यादा नहीं चल रहा। बेटियों की फीस भरना संभव नहीं। इस वजह से चारों बेटियों को निजी स्कूल से निकाल कर अब सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलवा रहे हैं।
केस-3 : 10th CBSE टॉपर ने सरकारी स्कूल में एडमिशन लिया
अरबिंदो हॉस्पिटल के पास रहने वाली शिवांशी निजी स्कूल में पढ़ते हुए कक्षा दसवीं में 90 प्रतिशत अंक से उत्तीर्ण हुई लेकिन अब ग्यारहवीं में उसे 15 किमी दूर सरकारी स्कूल में जाना होगा। शिवांशी की छोटी बहन दिव्यांशी को भी कक्षा नौवीं की प़ढ़ाई के लिए सरकारी स्कूल ही जाना होगा। शिवांशी के पिता फैक्टरी में काम करते हैं। लॉकडाउन के कारण तीन माह तक उन्हें घर पर रहना पड़ा और अब फिर से उनकी नौकरी शुरू हुई। उनकी मां निजी स्कूल में पढ़ाती थीं लेकिन स्कूल बंद होने से उनका काम भी बंद हुआ। इससे घर की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ा। आर्थिक दिक्कतों के चलते मां-बाप अब दोनों बेटियों को 15 किमी दूर सरकारी स्कूल में पढ़ने को भेजने को मजबूर हैं।
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