भोपाल। मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पताल शैतान का घर बन गए हैं। मरीजों के प्रति संवेदनशीलता की उम्मीद तो दूर की बात, सरकारी अस्पतालों में निर्धारित कर्तव्यों का पालन तक नहीं होता। गरीबों पर जुल्म की इंतहा तो देखिए, उच्च शिक्षित डॉक्टर हर मौत के लिए मरीज और उसके परिजनों को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी मीडिया की सुर्खियां बनने वाली खबरों को स्वत संज्ञान में नहीं लेता। खबर यह है कि मध्य प्रदेश के गुना में स्थित सरकारी जिला चिकित्सालय में गंभीर रूप से बीमार एक मरीज का इसलिए इलाज नहीं किया गया क्योंकि उसकी पत्नी के पास पर्चा बनवाने के लिए ₹5 नहीं दे। अस्पताल परिसर में पूरे 12 घंटे तक मरीज तड़पता रहा और उसकी लावारिस मौत हो गई।
अशोकनगर की शंकर काॅलोनी की रहने वाली आरती रजक अपने पति सुनील धाकड़ को लेकर बुधवार शाम 6 बजे जिला अस्पताल लेकर आई थी। महिला ने बताया कि उसके पास पैसे नहीं थे। पति को जिला अस्पताल लेकर आई, इसके बाद सामने ही स्थित एक पेड़ के नीचे लिटा दिया। उसके साथ ढाई साल का बच्चा भी था। वह काउंटर पर पहुंची तो वहां खड़े एक युवक ने कहा कि पर्चा बनेगा, इसके लिए पैसे लगेंगे, तो वह बैठ गई। महिला ने बताया कि वह घर गई और पैसे लेकर गुरुवार सुबह फिर काउंटर पर पहुंची तो फिर से पर्चा नहीं बनाया गया। उसे यह कहकर चलता कर दिया कि बाहर वाला काउंटर खुलेगा तब पर्चा बनेगा। पर्चा के इंतजार में आरती का पति सुनील तड़पते हुए मर गया।
सिविल सर्जन डॉ. एसके श्रीवास्तव का कहना है कि महिला अस्पताल के काउंटर पर ही नहीं पहुंची, वह बाहर की बैठी रही। पति टीबी का मरीज था और उसे कई अन्य समस्याएं भी थीं। हालांकि अपने पक्ष समर्थन में सिविल सर्जन ने सीसीटीवी फुटेज जारी नहीं किए हैं जो यह प्रमाणित करते हों कि महिला जिस समय काउंटर पर उपस्थित होने की शिकायत कर रही है, असल में वो उपस्थित थी या नहीं। शायद एसके श्रीवास्तव का मानना है कि वो डॉक्टर हैं, सिविल सर्जन हैं इसलिए उनकी बात पर विश्वास किया जाना चाहिए।
अस्पताल परिसर में कोई भी आकर सो जाए, पूछताछ नहीं होती क्या
इस घटना ने अस्पताल प्रबंधन को ही सवालों के घेरे में ला दिया है। कोई व्यक्ति अगर बिना इलाज के सामने अस्पताल के बाहर ही तड़प-तड़प पर दम तोड़ दे तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? जबकि जिला अस्पताल में हर समय सुरक्षा गार्ड मौजूद रहते हैं, पास की ही पुलिस चौकी है, वहीं रात में 2 वार्ड बॉय भी मुख्य गेट पर ही रहते हैं, ताकि मरीजों को अंदर शिफ्ट करने में वह मदद कर सकें। आपातकालीन ड्यूटी पर डॉक्टरों की मौजूदगी, पर्चा काउंटर पर 2 कर्मचारी की उपस्थिति, इतना सब कुछ होने के बाद भी किसी ने भी युवक को इलाज के लिए भर्ती नहीं कराया। सवाल यह है कि अस्पताल परिसर में एक परिवार मौजूद था। किसी ने पूछताछ तक नहीं की, कि वो यहां क्यों आए हैं।
तो स्टाफ क्या सो रहा था ?
अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि महिला काउंटर पर पर्चा बनवाने नहीं आई, अब सवाल पैदा होता है कि जो महिला 45 किमी दूर से पति और अपने ढाई साल के बच्चे को लेकर जिला अस्पताल तक आ गई, वो क्या काउंटर पर पर्चा बनवाने नहीं जा सकती है? या फिर सिविल सर्जन को लगता है कि डॉक्टर भगवान होते हैं, उनकी बात पर कोई सवाल नहीं करेगा।
पैसे नहीं थे तो फिर अशोकनगर से गुना कैसे आई
महिला आरती का कहना है कि वह सबसे पहले अशोकनगर कलेक्टर से मिलने गई थी, पति को बाहर बिठा दिया, आवेदन देना था। कर्मचारियों ने कहा कि आवेदन बनवाकर आओ। महिला ने कहा कि उसके पास एक पैसा भी नहीं था। इसलिए वापस आ गई। अशोकनगर में एक ऑटो चालक उसे बस स्टैंड छोड़ गया। एक छोटा हाथी वाहन गुना आ रहा था, उसके चालक को अपनी परेशानी बताई तो वह भी उसे बिना पैसे से ही बिठाकर ले गया। फिर गुना छोड़ा। बुधवार शाम वह अस्पताल आई, रात में बच्चे सहित भूखी-प्यासी पड़ी रही।
लवमैरिज की थी इसलिए मायका-ससुराल किसी ने साथ नहीं दिया
महिला आरती रजक मूलत: पठार मोहल्ला गुना की रहने वाली है। उसने सुनील धाकड़ से 2 साल पहले प्रेम विवाह किया। यही वजह रही कि महिला को उसे ससुराल वालों ने नहीं अपनाया। वहीं उसके मायके वालों ने भी दूरी बना ली। महिला का पति भी गुना का रहने वाला था। दोनों के परिवार ने रिश्ता तोड़ा को गुना छोड़कर अशोकनगर जाकर रहने लगे।
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