उदयगढ़ (आलीराजपुर)। कोविड 19 महामारी से पूरा विश्व जूझ रहा है । हमारे देश- प्रदेश में भी इस महामारी ने पैर पसारे हुए हैं। घर से बाहर निकलने वाला प्रत्येक कदम युद्ध के मैदान में पहुंचने जैसा है। भयानकता और भी बढ़ जाती है जब शत्रु अदृश्य हो। ऐसी स्थिती में सड़क पर तैनात पुलिसकर्मी, प्रशासनिक व्यवस्था और मानव सेवा में जुटे स्वास्थ्य विभाग के कोरोना योद्धाओं के साहस- जज्बे की जितनी सराहना की जाए कम है। उदयगढ़ वासियों को नाज है कि ऐसे योद्धाओं में शामिल है राष्ट्र की सबसे छोटी इकाई उनके गांव की बेटी सायना और नीलोफर।
कोरोना से भयभीत होकर जिस वक्त इंदौर सहित अन्य नगरों से सैकड़ों विद्यार्थी, मजदूर और निजी सही लेकिन आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोग अपने घर को लोट आए, वही इस संकट काल में उदयगढ़ की सायना और नीलोफर ने अपनी जिम्मेदारी/ कर्तव्यो से मुंह नहीं मोड़ा। दोनों निर्भय बहने इंदौर मे रहकर ही मानव सेवा में जुटी है ।
गांव की बेटियां दिसंबर 2019 से ही इंदौर में है और वहां के जाने-माने सीएचएल अपोलो हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रही है। सायना बाल चिकित्सा इकाई में सहयोगी है जबकि नीलोफर कैथ लैब मे कार्यरत है।
मां का त्याग-नानी के संस्कार
सायना, निलोफर व माता से पिता ने बरसों पहले अपने आप को अलग कर लिया था।
परित्यक्ता मां चाहती तो नव जीवन की ओर कदम बढ़ा सकती थी लेकिन अशिक्षा के चलते जो दुख उन्हें उठाने पड़े वह नहीं चाहती थी कि बेटियों को भी उस दौर से गुजरना पड़े। इसलिए बेटियों का भविष्य संवारना उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया।
मां और नानी ने बेटियों का बेहतर कल बनाने के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया।
सायना व नीलोफर बताती है कि
उदयगढ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मे वार्ड बॉय नानी की तनख्वाह से गुजारा ही हो सकता था। ऐसे में मां व नानी ने लोगों के घरों मे बर्तन कपड़े धोए, खाना बनाया। खर्चों में कटौती की और उन्हें पढ़ाया । निस्वार्थ सेवा भावना के संस्कार उन्हें मां व नानी से विरासत में मिले हैं । संकट काल में जब सेवा का अवसर आया तब वह कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकती थी।
*4 माह से नहीं हुए दीदार*
घर पर नहीं है एंड्राइड मोबाइल
सायना व नीलोफर ने 4 माह से अपनी मां नानी व अन्य सदस्यों का मुंह नहीं देखा है। घर पर एंड्राइड मोबाइल नहीं है अतः सिर्फ बात ही हो पाती है । गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले मामा-मामी और बच्चे भी रह रह कर याद आते हैं।