उमाशंकर मिश्र /नई दिल्ली: कटरा और जम्मू के मंदिरों में उपयोग होने वाले फूल अपशिष्टों का उपयोग अब अगरबत्ती बनाने के लिए किया जाएगा। इसके लिए श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड और लखनऊ स्थित सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के बीच समझौता किया गया है।
सीएसआईआर-सीमैप के वैज्ञानिक फूलों से अगरबत्ती बनाने के लिए श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को नि:शुल्क परामर्श, तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। इसके साथ-साथ श्राइन बोर्ड में काम करने वाली महिलाओं को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। अगरबत्ती बनाने के लिए फूलों की पंखुड़ियों एवं तनों को पहले अलग किया जाएगा और फिर उन्हें धोने व सुखाने के बाद पीसा जाएगा। इस पिसी हुई सामग्री का उपयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाएगा।
श्राइन बोर्ड अधिकारियों का कहना है कि अगरबत्ती बनाने के लिए एक केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहां माता वैष्णो देवी मंदिर से निकले फूलों के कचरों को एकत्रित किया जाएगा और फिर उससे अगरबत्ती बनायी जाएगी। इस संबंध में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश कुमार और सीमैप के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भास्कर ज्योति देऊरी ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस मौके पर मौजूद श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि श्री माता वैष्णो देवी बोर्ड और सीएसआईआर-सीमैप की इस संयुक्त पहल से फूलों के कचरे का निपटारा उपयुक्त रूप से किया जा सकेगा। शुरुआती दौर में माता वैष्णो देवी के भवन में पूजा अर्चना के लिए हर दिन उपयोग होने वाले फूलों के अलावा कटरा के दूसरे मंदिरों से निकले अपशिष्ट फूलों का उपयोग इस पहल में किया जाएगा। कुछ समय बाद मंदिरों का शहर कहे जाने वाले जम्मू से निकले फूलों के कचरे को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।
माता वैष्णो देवी के पवित्र गुफा तीर्थ की ओर जाने वाले रास्ते को तीर्थयात्रियों के लिए अधिक आकर्षक बनाने के लिए सुगंधित, सजावटी और फूलों के पौधों के साथ-साथ बेलदार पौधे लगाने का सुझाव देने के लिए वैज्ञानिकों को कहा गया है। सीमैप के वैज्ञानिकों ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है और पौधों की उपयुक्त प्रजातियों के चयन में श्राइन बोर्ड को भरपूर सहयोग देने के लिए कहा है।
सीमैप के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रमेश श्रीवास्तव ने बताया कि माता के भवन की ओर जाने वाले रास्ते में सुगंधित और औषधीय पौधे लगाने का सुझाव श्राइन बोर्ड को दिया गया है। जिन पौधों को लगाने के सुझाव दिए गए हैं, उनमें हरश्रृंगार, रात रानी, चांदनी और मोगरा शामिल हैं। सीमैप के एक अन्य वैज्ञानिक डॉ आलोक कालरा ने बताया कि इन पौधों को लगाने से एक रास्ते की सुंदरता बढ़ेगी और खच्चरों की आवाजाही व उनके मल से उत्पन्न बदबू को भी दूर किया जा सकेगा।
इस पहल से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस तरह बनायी जाने वाली अगरबत्तियों में खुशबू के लिए किसी रसायन का उपयोग नहीं किया जाएगा और उन्हें प्राकृतिक फूलों से बनाया जाएगा। कहा जा रहा है कि कटरा और जम्मू समेत अन्य इलाकों में फूलों के कचरे से अगरबत्ती बनाने के काम को बढ़ावा मिलता है तो इससे रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं और कचरा प्रबंधन में मदद मिल सकती है। (इंडिया साइंस वायर)
सीएसआईआर-सीमैप के वैज्ञानिक फूलों से अगरबत्ती बनाने के लिए श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को नि:शुल्क परामर्श, तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। इसके साथ-साथ श्राइन बोर्ड में काम करने वाली महिलाओं को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। अगरबत्ती बनाने के लिए फूलों की पंखुड़ियों एवं तनों को पहले अलग किया जाएगा और फिर उन्हें धोने व सुखाने के बाद पीसा जाएगा। इस पिसी हुई सामग्री का उपयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाएगा।
श्राइन बोर्ड अधिकारियों का कहना है कि अगरबत्ती बनाने के लिए एक केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहां माता वैष्णो देवी मंदिर से निकले फूलों के कचरों को एकत्रित किया जाएगा और फिर उससे अगरबत्ती बनायी जाएगी। इस संबंध में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश कुमार और सीमैप के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भास्कर ज्योति देऊरी ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस मौके पर मौजूद श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि श्री माता वैष्णो देवी बोर्ड और सीएसआईआर-सीमैप की इस संयुक्त पहल से फूलों के कचरे का निपटारा उपयुक्त रूप से किया जा सकेगा। शुरुआती दौर में माता वैष्णो देवी के भवन में पूजा अर्चना के लिए हर दिन उपयोग होने वाले फूलों के अलावा कटरा के दूसरे मंदिरों से निकले अपशिष्ट फूलों का उपयोग इस पहल में किया जाएगा। कुछ समय बाद मंदिरों का शहर कहे जाने वाले जम्मू से निकले फूलों के कचरे को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।
माता वैष्णो देवी के पवित्र गुफा तीर्थ की ओर जाने वाले रास्ते को तीर्थयात्रियों के लिए अधिक आकर्षक बनाने के लिए सुगंधित, सजावटी और फूलों के पौधों के साथ-साथ बेलदार पौधे लगाने का सुझाव देने के लिए वैज्ञानिकों को कहा गया है। सीमैप के वैज्ञानिकों ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है और पौधों की उपयुक्त प्रजातियों के चयन में श्राइन बोर्ड को भरपूर सहयोग देने के लिए कहा है।
सीमैप के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रमेश श्रीवास्तव ने बताया कि माता के भवन की ओर जाने वाले रास्ते में सुगंधित और औषधीय पौधे लगाने का सुझाव श्राइन बोर्ड को दिया गया है। जिन पौधों को लगाने के सुझाव दिए गए हैं, उनमें हरश्रृंगार, रात रानी, चांदनी और मोगरा शामिल हैं। सीमैप के एक अन्य वैज्ञानिक डॉ आलोक कालरा ने बताया कि इन पौधों को लगाने से एक रास्ते की सुंदरता बढ़ेगी और खच्चरों की आवाजाही व उनके मल से उत्पन्न बदबू को भी दूर किया जा सकेगा।
इस पहल से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस तरह बनायी जाने वाली अगरबत्तियों में खुशबू के लिए किसी रसायन का उपयोग नहीं किया जाएगा और उन्हें प्राकृतिक फूलों से बनाया जाएगा। कहा जा रहा है कि कटरा और जम्मू समेत अन्य इलाकों में फूलों के कचरे से अगरबत्ती बनाने के काम को बढ़ावा मिलता है तो इससे रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं और कचरा प्रबंधन में मदद मिल सकती है। (इंडिया साइंस वायर)